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प्रेम व विश्वास – विवाह के प्राण तत्व हैं

लेख गजानन पाण्डेय

रिश्तों में मधुरता के लिए नम्रता, गंभीरता व सहनशीलता जरूरी है।
एक दूसरे का सम्मान करें। हमें ऐसी बात नहीं कहनी चाहिए,
जिससे दिल को ठेस पहुंचे क्योंकि किसी को हम जो देते हैं,
वही हमें मिलता भी है-चाहे सम्मान हो या प्यार।

मार्च, 2023
नवसंवत विशेषांक

वैवाहिक संस्था आपसी विश्वास व समझदारी पर टिकी है। पूर्व में, अरेंज्ड मैरिज हुआ करते थे, मां बाप लड़के या लड़की का जहां विवाह तय कर देते थे वहां विवाह संबंध जुड़ जाता था। परन्तु आजकल लड़का लड़की इस बारे में अपनी पसंद को वरीयता देते हैं। ज्यादातर परिवार, उस घर की आर्थिक स्थिति का भी पता करते हैं और लड़के के कामकाज के संबंध में जांच पड़ताल करने के बाद ही रिश्ते की बात चलाते हैं। वही यदि लड़की पढ़ी-लिखी होने के साथ नौकरी भी करती है तो उसे प्राथमिकता दी जाती है।
खुले वातावरण में शिक्षा प्राप्त करने से, लड़के व लड़कियों के बीच मेलजोल आम बात है। जहां तक विवाह की बात है, इस बारे में आज की लड़की अपना निर्णय खुद लेना चाहती है और इस कारण आजकल अंतर्जातीय विवाह को भी मान्यता मिलने लगी है।
जबकि हमारे यहां विवाह को महत्वपूर्ण संस्कार माना गया है जिसका आधार हमारी सनातन संस्कृति है। इसमें लड़का-लड़की के विवाह सूत्र में बंधने को देवी योग का संकेत माना जाता रहा है। कहते हैं-जोडि़यां तो वही बनाता है। हम तो उन दोनों को मिलाने का जरिया बनते हैं।
प्रायः वैदिक व सनातन रीति से विवाह संपन्न किये जाते हैं। उसमें समाज व सगे-संबंधियों की उपस्थिति के साथ-साथ मंत्रेच्चार, यज्ञ, हवनादि सहित पंडितों की देखरेख में, अग्नि को साक्षी मानकर लड़का-लड़की एक दूसरे के साथ जुड़ने व आजीवन इस रिश्ते को ईमानदारी व समर्पण के साथ निभाने का वचन देते हैं।
विवाह कराने वाले पुरोहित उन्हें सप्तपदी यानी सात वचन जिसे लड़का लड़की को व लड़की लड़के को आजीवन पालन करना होता है।
उसमें एक दूसरे से कुछ न छिपाना, किसी समस्या पर एक दूसरे के साथ सलाह मशविरा करना, परिवार के भरण पोषण के लिए आजीविका से जुड़ना, आपस में प्रेम विश्वास, सेवा व त्याग के महत्व को समझाया गया है।
इससे विवाह संस्कार धर्मानुष्ठान का रूप ले लेता है। यह दोनों को एक दूसरे के साथ मन आत्मा से जुड़ने दुख सुख में साथ निभाने और परिस्थिति के अनुरूप अपने को ढालने यानी समझदारी साझेदारी व समन्वित प्रयास से गृहस्थी को चलाने के संकल्प से जोड़ता है।
इसमें नर-नारी का जीवन एक दूसरे के बिना अधूरा बताया गया है। नारी पुरुष के वाम अंग की शोभा होती है। शिव-पार्वती के अर्धनारीश्वर रूप की अधिष्ठात्री होती है।
प्रायः शिव जी के जैसा वर प्राप्त करने के लिए लड़की शिव जी की पूजा करती है। सोलह सोमवार का व्रत हो या सुहागन महिलाओं द्वारा किया जाने वाला वट सावित्री, हरितालिका या करवा चौथ का व्रत इसी परंपरा का निर्वाह करना है। परन्तु समय बदला, रीति रिवाज व परंपराओं का मोल न रहा। बाजारवाद ने जीवन शैली को बदलकर रख दिया है, उसमें मर्यादा व आदर्श के लिए स्थान नहीं है, जो हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग हुआ करता था। बड़ों का आदर सम्मान, उनकी सीख पर चलने व वचन के पालन का महत्व होता था। ‘प्राण जाए पर वचन न जाए’ की बात को प्रमुखता दी जाती थी। पति-पत्नी के बीच गहरा लगाव, प्रेम, सेवा व त्याग की भावना थी।
यही प्रेम की उष्मा उन्हें हर मुसीबत में एक दूसरे के साथ होने का एहसास दिलाती थी, वही शक्ति व आत्मविश्वास की भावना को बढ़ाने में सहायक होती थी। यही विवाह के स्थायित्व का आधार बनता था। इसलिए इस पवित्र बंधन को सात जन्मों का रिश्ता कहा जाता था। यही जीवन साथी की मूल अवधारणा है।
जैसे सीता के लिए राम थे। राधा के लिए कृष्ण थे। कृष्ण के लिए मीराबाई के मन में प्रेम, समर्पण व भक्ति की पराकाष्ठा दिखाई देती है।
मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो न कोई। यही सब तो प्रेम है। प्रेम ही ईश्वर रूप है। जीवन की प्रेरक शक्ति है। ऐसे अद्भुत उदाहरण हमारी संस्कृति में ही मिलते हैं।
प्रेम और विश्वास विवाह का प्राण तत्व है। प्रेम पर विद्वानों ने बड़े सुंदर विचार रखे हैं।
‘प्रेम तुम्हारे अंदर है, न कि तुम प्रेम के अंदर।’ -आर्सन वेल्स
जब प्रेम हमारे अंदर होगा तो वह हमारे व्यवहार में दिखाई देगा।
‘हम अकेले आते हैं। अकेले जीते हैं और अकेले ही चले जाते हैं। केवल प्रेम और दोस्ती का साथ हमें दो पल का सुकून दे जाता है कि हम अकेले नहीं हैं।
-जानी डेप
यही प्रेम विश्वास सुखद परिवार की नींव बनता है।
अंतरंग संबंधों में आत्मीयता, भावनाओं की कद्र करना व एक दूसरे का सम्मान का भाव ही विवाह को मजबूती देता है।
प्रेम एक दर्द है। अगर दर्द से निजात पाना चाहते हो, प्रेम करना छोड़ दो, लेकिन दर्द तब भी होगा इसलिए कहता हूं-प्रेम दर्द से, पर दर्द पाने के लिए प्रेम करो—–खुशियां पाने के लिए प्रेम करो। -कान्सटेटिन स्टे निस्लेव्सकी
यानि प्रेम-त्याग व बलिदान का दूसरा रूप है। प्रेम दीपक पतंगे की भांति अपने साथी के लिए मिट जाना चाहता है। वह उसका दुख लेकर उसे सुख देता है। इसलिए इस पवित्र बंधन को अमर प्रेम कहा गया है।
महान संत मीराबाई का जीवन इसका सर्वोत्तम उदाहरण है। आज परिस्थितियां भिन्न हैं। दोनों के कामकाजी होने से, आर्थिक रूप से सक्षम होने से उनमें अहंकार आता है और फिर वे दूसरे को अपने आगे छोटा व कमतर मान बैठते हैं। यही आजकल के घरेलू लड़ाई-झगड़े बेवजह के तनाव संवादहीनता का मूल कारण है।
यही जब लंबा खि्ांच जाता है तो जीवन को जीना कठिन हो जाता है। प्रेम के बिना जीवन नीरस व बोझिल बन जाता है। यदि इस परिस्थिति को धैर्य व विवेक से, बड़ों के संरक्षण में न संभाला जाए तो तलाक तक की नौबत आ जाती है।
इसलिए विश्वास व सही आचरण से ही पति पत्नी के रिश्ते मधुर बनते हैं और यह कोशिश दोनों ओर से होनी चाहिए। रिश्ता कोई भी हो, ज्यादा अपेक्षा नहीं रखी जाए। एक दूसरे का भरोसा किया और रखा भी जाए। सहयोग भी करते रहें।
रिश्तों में मधुरता के लिए नम्रता, गंभीरता और सहनशीलता जरूरी है। एक दूसरे का सम्मान करें। हमें ऐसी बात नहीं कहनी चाहिए, जिससे दिल को ठेस पहुंचे क्योंकि हम जो किसी को देते हैं, वही हमें मिलता भी है-चाहे सम्मान हो या प्यार।
घरेलू समस्याओं को धैर्य, समझदारी व आत्म संयम द्वारा ही हल किया जा सकता है।
निष्कर्ष
रिश्तों को निभाया नहीं जीना होता है। पति पत्नी का रिश्ता तो बहुत खास होता है, वह जितना ही सुदृढ़ होगा, परिवार में सुख शांति व समृद्धि बनी रहेगी।

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