लेख स्वस्ति
शुद्ध भारतीय (देसी)
गाय के पुट्ठे में अदृश्य ऊर्जा
होती है जिसे Invisible energy भी कहा जाता है। इसी से हमें
अमृत समान तीन गव्य
प्राप्त होते हैं।
अप्रैल 2023
शिक्षा विशेषांक
माँ का शब्द आते ही हमारी आंखों में वह चेहरा सामने आता है जिसने हमें जन्म दिया, खाना-पीना, चलना-बोलना, पढ़ना-लिखना और समाज में खड़ा होना सिखाया। मां के साथ-साथ कभी उस मां का विचार आया जिसने हमें औषधियां, भोज्य पदार्थ, जल मिट्टी, सहनशीलता जैसी विलक्षण शक्ति, गुरुत्वाकर्षण बल जैसी अतुल्य शक्ति और न जाने कितने अनमोल उपहार दिये। जी हां, मैं धरती मां की बात कर रही हूं इस धरती मां की धरा पर ऐसा कोई देश है जिसे हम धन्य, पुण्य भूमि कह सकते हैं, जहां मानव कल्याण सर्वोपरि तथा पहली प्राथमिकता है, जहां की वायु के कण-कण में आध्यात्मिकता का बोलबाला है, जिस देश के आदर्शो में अब भी त्याग, विश्वास, श्रद्धा अब भी सर्वश्रेष्ठ व सर्वोच्च है।
भारत पूरे संसार का विश्व गुरु है, क्योंकि पूरी पृथ्वी पर यही एक ऐसा देश है जहां सभी ग्रहों की अवशोषित किरणें सीधी पड़ती है। जहां षट्ट्टतुएं होती हैं, उसी प्रकृति में सभी प्रकार की वनस्पतियां उगती हैं। उसी देश में सूर्यनारायण देवता की प्रतिनिधि गौ माता पायी जाती है। हमारी प्रकृति केवल देती ही है, ठीक उसी प्रकार गौमाता भी देने वाली ही है।
तिलं न धान्यं पशवो न गावः
जिस प्रकार तिल धान्य (धान) होते हुए भी सभी धानों में श्रेष्ठ है कि इसे केवल धान्य नहीं कहा जा सकता ठीक उसी प्रकार जीवों में गाय इतनी श्रेष्ठ है कि इसे पशु नहीं कहा जा सकता।
इस पूरे ब्रह्मांड में केवल गौ माता के पास सूर्य केतु नाड़ी है, गौमाता अपने सींगों के द्वारा सूर्य तथा अन्य ग्रहों की शक्ति तथा किरणों को अवशोषित करती है और अपने पुट्ठे (भ्नउच) से मार्ग बनाती हुई पेट में भेजती है।
शुद्ध भारतीय (देसी) गाय के शरीर पर ही पुट्ठा पाया जाता है अन्यों के नहीं। गौ माता के पुट्ठे में अदृश्य ऊर्जा होती है जिसे (प्दअपेपइसम मदमतहल) भी कहा जाता है। यही मदमतहल स्वर्ण, क्षार ।सामसपदम का रूप ले लेती है और हमें अमृत समान तीन गव्य प्राप्त होते हैं। दूधमूत्र, गोमय (गोबर)। यही कारण है कि गौमाता के इन तीन गव्यों का उपयोग करने वाला सदा सूर्य के समान प्रकाश मान रहता है।
गौमाता अपने आप में संपूर्ण वेद है।
परमात्मा की इस सृष्टि में गौ माता, प्रकृति और मानव शरीर का अनमोल उपहार हमें मिला है। वह अतुलनीय है। गौ माता और प्रकृति में गजब की समानता है। प्रकृति पांच तत्वों से मिल कर बनी है, यह मानव शरीर भी पंच महाभूतों का पुतला है। यही पांच तत्व गौ माता के पांच गव्यों में मिलते हैं जिन्हें पंचगव्य कहा जाता है। कहीं देखा है ऐसा महासमन्वय?
प्रकृति मनुष्य और गौमाता, तीनो पंचमहाभूतों से निर्मित है। इन पांच तत्वों में से किसी एक की प्राप्ति को रोक दिया जाये तो मानव शरीर अस्वस्थ हो जाता है, ठीक ऐसे ही यदि किसी भी एक तत्व की अधिकता या उसकी कमी प्रकृति में हो जाये तो प्रकृति का संतुलन बिगड़ जाता है, परन्तु गौ माता में यह पांच तत्वों का संतुलन सदा बना रहता है। इससे यह तो साबित हो ही गया कि गौ माता इन दोनों से श्रेष्ठ है। इसके श्रेष्ठ होने का एक और कारण है वह है इसमें 33 प्रकार के देवी देवताओं का वास है। इस कारण यह सर्वश्रेष्ठ है।
गौ माता से हमें तीन गव्य (दूध, मूत्र एवं गोमय) तथा दो उपगव्य (घी (घृत), छाछ) मिलते हैं, इसीलिए इसे पंचगव्या भी बोला जाता है। विशेष बात यह है कि पांचों गव्य एक से बढ़ कर एक है। प्रत्येक गव्य पंच महाभूत तत्वों का प्रतिनिधित्व करता है।
अग्नि-घृत
वायु-मूत्र
आकाश-छाछ
पृथ्वी (गोमय (गोबर)
जल-दूध
ये पांचों गव्य अमृत तुल्य हैं। मानव शरीर में जब भी पांच महाभूत तत्वों का असंतुलन होता है, तब ये पंचगव्य ही उसे संतुलित कर सकते हैं। ये पंचगव्य गुणों की खान हैं। आइये आपको बताते हैं कि पंचगव्य से मानव शरीर को क्या लाभ मिलता है।
क-पंचगव्य शरीर के सभी प्रकार के विकारों को नष्ट करने में पूर्ण रूप से सक्षम है।
ख-गौ मूत्र, मानव शरीर का कीटाणु रहित करने की शक्ति रखता है।
ग-आधुनिक रसायन शास्त्र के अनुसार गौ मूत्र में रासायनिक तत्वों का भंडार है। मुख्यतः
1- अमोनिया तथा अमोनिया गैस यह शरीर के धातुओं और रक्त संगठन को स्थिर करता है, फेफड़ों व श्वसन अंगों का संक्रमण से बचाता है।
2- तांबा आयरन-अतिरिक्त चर्बी को बनने से रोकता है। शरीर की जीवाणुओं से रक्षा करता है।
3- यूरिया एवं यूरिक एसिड मूत्र उत्सर्ग को प्रभावित करता है।
4- इसमें गंधक होने के कारण यह रक्त शोधक है।
5- सोडियम तथा पोटेशियम होने के कारण मांसपेशियों की दुर्बलता को दूर करता है। आलस्य का नाश होता है। रक्त शोधक तथा अम्ल नाशक है।
6- विटामिन ए, बी, सी, डी और ई भरपूर मात्र में है। जिससे रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है।
7- गौ मूत्र में कैल्शियम और अन्य मिनरल्स भरपूर मात्र में पाये जाते हैं। जिससे मानव शरीर की अस्थियों की पोषकता को बल मिलता है।
घ- पंचगव्य केवल शरीर को ही स्वस्थ करने की क्षमता नहीं रखता अपितु यह मानसिक व भावनात्मक रूप से भी अत्यंत प्रभावशाली है।
ड- पंचगव्य लेने वाला व्यक्ति सदैव आनंदमय तथा तनाव रहित रहता है।
पूरे ब्राह्मांड में केवल देसी गौ माता के पास ही सूर्य केतू नाड़ी है। इसी कारण इसके गव्यों में स्वर्ण क्षार रहती है। यह अपने सींगों के माध्यम से सूर्य की ऊर्जा अवशोषित करके अपने गायों को ऊर्जावान तथा क्षारीय बनाती है। कलयुग में मानव का शरीर मानसिक व शारीरिक विकारों का पुतला हो गया है। सतयुग, द्वापर तथा त्रेता युग में मानसिक व शारीरिक विकार न के बराबर होते थे। धन्य हो हमारे ट्टषि मुनि जिन्होंने कलयुग आने से पहले ही ऐसी चिकित्सा पद्धति हमें दे डाली जिसे अपना कर हम आज के युग में भी बिना किसी दवाई के अपना जीवन आराम से जी सकते हैं।