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दीया जलता रहने दे

पति शराबी था। पारों को पीटता था। पारो घर छोड़ कर मायके आ गई।
लेकिन एक दिन———-।

स्वाधीनता विशेषांक
अगस्त, 2023

कहानी बलविन्दर बालम

पारो तीन बहनें थी। पारो सबसे छोटी। भोली-भाली सी खूबसूरत। जैसे कुदरत ने काएनात का सारा हुस्न उसमें ही उढेल दिया हो। वर्षा के पानी की तरह स्वच्छ पवित्र पारो की साधारण शख्सियत को देखकर सच भूख उतरती। सुन्दर लड़की थी पारो। गरीबी में रोटियां खाकर बड़ी हुई पारो को भगवान ने झोलियां भरकर हुस्न दिया था। घरेलू काम में सख्त मेहनत करती थी। सारा गांव उसकी प्रशंसा करता थकता नहीं था।
पारो का पिता राज मिस्त्री का कार्य करता था। उसकी दो बहनें विवाहित थी। पारों का रिश्ता भी एक राज मिस्त्री लड़के से कर दिया गया, उसका मंगेतर दीपक हाथ पैरों का भारी तथा तंदुरूस्त जिस्म का मालिक था। ऊंचा लम्बा कद-काठ और परिश्रमी लड़का था।
पारो की शादी साधारण ढंग से कर दी गई। दीपक माता-पिता का इकलौता पुत्र था। माता पिता सिर पर नहीं थे। उसके पास कमरे तथा खुला आंगन था। जो पुश्तैनी था। मालपशु रखने के लिए एक कमरा भी था यहां एक भैंस बांधी हुई थी।
पारो का पति दीपक मेहनती तो था परन्तु उस को शराब पीने की बुरी आदत थी। पारो के साथ उस का हमेशा ही मतभेद रहता। उसको दिहाड़ी न मिलती तो वह सारा सारा दिन शराब पीता रहता। इसी जदो-जहद में पारों के एक लड़का तथा एक लड़की भी हो गए।
दीपक को एक पड़ोसन खराब करती थी। वह पड़ोसन उस की दूर-दराज की रिश्तेदार थी। जो दीपक की कमाई हड़प्प करती थी। उसके साथ उस का आंख मट्टका भी था। शराब पीकर दीपक उस पड़ोसन के घर भी चला जाता था। पारो के रोकने पर मार पिटाई होती। पारो ने उस पड़ोसन को बहुत समझाया परन्तु उस पड़ोसन ने पारों के पैर न टिकने दिए। आखिर रोज की कलह कलेश से पारो ने अपने माता-पिता से सारी बात की। झगड़ा हल करने के लिए कई बार पंचायतें बैठी परन्तु दीपक न सुधरा। वह पारो पर रोज हाथ उठाता, मारता, पीटता, गंदी गालियां बकता। समय-समय पर पारों के अभिभावक उसके घर दाल, आटा आदि दे जाते। परन्तु पारो सुखी न हुई। पारो को उसके दारू (शराब) पीने का इतना डर नहीं था जितना डर उसको पड़ोसन के बुरे व्यवहार का था। आखिर पारो तंग आकर मायके आ गई।
दीपक ने लड़की को रख लिया और लड़के को पारो ले गई। कोर्ट कचहरी में खज्जल खवार हुए, पारो ने केस किया और दीपक ने भी केस किया। आखिर कई वर्ष दोनों कोर्ट कचहरी में तरीखे भुककते रहे। उन दोनों को कोई भी समझाने वाला नहीं था।
एक दिन अचानक पारो को उस की एक पुरानी सहेली मिलने के लिए आती है। वह उसके गांव में किसी काम आई थी। और पारो को मिलने के लिए आ गई। उसको पता चल गया था कि पारो का कोर्ट में केस चल रहा है तथा तलाक होने वाला है।
पारो को उस की सहेली कमला बड़े चाव से मिली। हाल-चाल पूछा तो पारो ने सारी बात कमला से कर दी। कमला बेशक जवान थी परन्तु चेहरे और शरीर की बनावट से उसी की आयु से ज्यादा लगती थी।
कमला ने पारो को अपने तजुर्बे के जरिए उसको समझाते हुए कहा, ‘देख पारो, मैं भी यहां ब्याही गई थी। मेरा पति भी तेरे पति जैसा ही था परन्तु मैंने सब कुछ संभाल लिया। सुन, पति के बगैर औरत की कोई वुकत नहीं। कहते हैं आदमी तो मिट्टी का भी मान नहीं होता। औरत चाहे तो क्या-क्या कर सकती है, अगर उसमें हिम्मत हो, धैर्य, हौंसला हो, अच्छे बुरे की पहचान हो तो औरत सब कुछ कर सकती है, सब मसलों का हल ढूंढ सकती है। पारो औरत एक तेज तरार चाकू की तरह होती है। जिस की धार बहुत तेज होती है। जरा सा हाथ छू जाए लहू-लहू कर देता है चाकू। चाकू की अपनी कोई वुकत नहीं होती। इसको चलाने के लिए पीछे ताकतवर हाथ चाहिए। अगर इस को चलाने वाला कोई न हो चाकू बेकार हो जाता है। और यह पड़ा रहे, इसका प्रयोग कोई न करे तो इस को जंग लग जाता है। इसको एक बार जंग लग जाए तो फिर जंग उतरना आसान नहीं होता। जंग उतारने के लिए बहुत समय चाहिए और चाकू को बहुत तकलीफ होती है। जंग लगे चाकू की कोई कीमत नहीं होती पारो। औरत तो वह तेज तीखी धार वाला चमकता चाकू है, अगर वह चमकता रहे तो कईयों की जून सुधार देता है। देख पति की खुशबू तो उस फूल की तरह होती है जो टूट कर भी साथ नहीं छोड़ती। पारो दीए की ज्योति बाती से नहीं होती, दीए के तेल से होती है परन्तु बाती के बगैर दीया किस काम का? तेल तथा बाती के सुमेल से ही पारो लौ बनती है। जो स्थान पति का होता है और कोई नहीं ले सकता। आदती तो बाहर कई तरह के काम करते फिरते हैं परन्तु औरत वह जो अपने घर को संभाल ले। औरत के आगे तो बड़े-बड़े ट्टषि मुनि भी पिघल गए। पारो अभी तू जवान है, अगर तेरा तलाक हो गया तो कई मुसटंडे (लोफर) अपनी भयानक आंखें तुझ पर गड़ा लेंगे। बंदे की जात का क्या है? कई तरह-तरह के लोग तुझे झांसा देकर लालच देकर तेरे शरीर का यौवन रस लेने के लिए, कई भंवरे तेरे ऊपर मंडराने लगेंगे झूठ-मूठ। समाज में तलाकशुदा औरत का जीना कोई आसान नहीं होता, फिर अनपढ़ महिला का। पारो देख, भाई-बहन, रिश्तेदार माता-पिता कोई भी पति का स्थान नहीं ले सकता। मेरी मान तो लोगों की बातों में मत आ, चुप करके अपने पति के घर चली जा और उसे रजामंद कर ले। किसी तरह सहमत कर ले। औरत की विनती, औरत का तरला भगवान का तरला होता है पारो। वह (पति) भी थक टूट गया होगा मुकदमा लड़-लड़ कर। मुकदमे तो घरों के घर फूंक देते हैं। तेरे पास लड़का है और उसके पास लड़की। मेरी मान तो चुप करके अगली पेशी (तारीख) से पहले तू अपने पति के घर चली जा, क्या तुझे मार देगा? मेरी मान तो चुप करके अपने पति के घर चली जा। किसी से बात मत करना। लोग बहुत बुरे, भैड़े हैं, आबाद नहीं होते देते बेटियों को। हमारा समाज बहुत बुरा समाज है, इस में जीना कोई आसान नहीं। मेरी मान तो पति को समझा-बुझा ले।’
पारो ने कमला को गले से लगा लिया। कमला, अच्छी सहेलियां ही भगवान का रूप होती है। खून के रिश्ते से ऊपर एक रिश्ता है, यह अच्छी हमराज सहेलियों का। इस समाज में तेरी जैसी सहेलियां ही होती हैं जो सही रास्ता बताती है मुसीबत में। कमला मैं तेरा अहसान सारी उम्र नहीं भूलूंगी, तूने जो सलाह मुझे दी है, शायद कोई जज (न्यायधीश) भी नहीं दे सकता। तूने जिस तरह कहा मैं उसी तरह ही करूंगी, तलाक नहीं लूंगी।’
पारो के हृदय में कमला के विचार घर कर गए। क्या मुझे मार देगा? वह खुद भी टूट गया होगा अपने लड़के को त्याग देगा? अपनी बेटी का मुख देखे कितने वर्ष हो गए? वह अब कैसी होगी? उस को कौन संभालता होगा? कई सवाल उठ खड़े हुए उस के दिमाग में। कमला चाय आदि पीकर चली गई। पारो ने अब पूरा मन बना लिया था कि वह दीपक को मना कर ही रहेगी।
अगले दिन उस ने अपनी मां से सारी बात की। जुररत करके दोपहर से पहले कपड़ा-लीता बांधा। कुछ रुपए मां से लिए। लड़के को नहा धुला कर तैयार किया। स्वयं तैयार हुई। माथे में बिंदिया, शृंगारी, मांग में सिंदूर डाला और शीशे के सामने आ कर भगवान से कहने लगी, ‘हे मेरे भगवान लाज रखना।’ एक बैग में अपने तथा लड़के के कपड़े डाले। मां को सब कुछ बता दिया। मां के आंसू बह गए और लाखो आशीषें दे डाली। ‘जैसे तेरी मर्जी बेटी, भगवान भला करेगा।’
दोपहर सिर पर चमक रही थी। सितम्बर की ठंडी-ठंडी हवा अच्छी लगती थी। चमकता सूरज जैसे पारो का साथ दे रहा हो। जैसे सूरज उसके पिता की तरह उसका सिर पर आशीर्वाद दे रहा हो। शक्ति का प्रतीक सूरज जैसे उस में शक्ति की किरणें भर रहा हो, जैसे कह रहा हो बेटी घबराना नहीं तेरी जीत होगी।
पारो लड़के को साथ लेकर पति के गांव आ गई। कई लोगों ने रास्ते में उस को कई सवाल पूछे परन्तु पारो ने प्रत्येक सवाल का जवाब मौके मुताबिक दिया। वृद्ध महिला ने कहा, ‘बेटी अच्छा हुआ तू आ गई, देख तेरे घर का क्या हाल हुआ पड़ा है? अब पड़ोसन भी उस का साथ छोड़ गई है। अपनी बेटी का हाल देख क्या बनी रहती है?
पारो ने घर का दरवाजा खोला तो आंगन में बेटी को देखकर उस की ऊंची चीख हृदय में ही दम तोड़ गई, गंदम गंदी लड़की, मैले कुचैले रूखे बाल, मैले कुचैले कपड़े को देखते ही उठा कर कलेजे में लगा लिया। लड़की बिट-बिट मां की और देख रही थी। पारो का कलेजा आंखों में बह गया। मां का हृदय मां ही जानती है। जैसे उसका कलेजा चूर-चूर हो गया हो। ‘हाय, मेरी लाडली बेटी, मेरी जान, मेरी प्यारी-प्यारी बेटी’। सात वर्ष की लड़की ने मां को पहचान लिया था। पारो के आंसू थमे न थमे। सारे घर का बुरा हाल था। चारों तरफ मिट्टी गर्दा कमरों का बुरा हाल। पारो ने लड़की को कई बार चूमा, ‘तूने कैसे बिताए इतने दिन मेरे बगैर मेरी बेटी, मेरी प्यारी बेटी।’
पारो ने सारे घर की सफाई की। चादरें साफ की और बेटी को साबुन मल-मल कर नहलाया उसके सिर की कंघी की। प्यार लाड से उस को तैयार किया। जो उसके पास रुपए थे। उसकी रसोई का सामान आदि खरीदा।
दोपहर की रोटी बनाकर बच्चों को प्यार से खिलाई। छोटे-छोटे काम करते शाम ढलने लगी। सूरज की मद्धिम टिक्की आसमान की गोद में सिमटती जा रही थी। परन्तु दीपक अभी भी काम से नहीं आया। वह समझ गई कि वह शराब पी कर ही आयेगा। सूरज डूब चुका था अंधेरा पसर गया था।
पारो ने कमरे का दीया जलाया और रात के लिए आहार-पाहर करने लगी। शराब के नशे में डूबा दीपक लड़खड़ाता हुआ जब दहलीज से आगे आया तो घर में दीया जलता देख आंखें झपकने लगा। पारो को देख हैरान हो गया। घर साफ स्वच्छ नजर आ रहा था। चूल्हा जल रहा था। वह सीधा अंदर चला गया।
पारो ने सोचा ज्यादा से ज्यादा मारेगा ही, कोई बात नहीं। पारो ने एक पानी का गिलास भरा और पति के नजदीक जाकर विनम्रता से कहा, ‘यह लो, पानी पी लो।’
दीपक ने ध्यान से देखा, कुछ सोचा, आंखें जोर देकर खोली तथा चुप-चाप गिलास पकड़ कर पानी पी लिया। पारो ने जुररत युक्त धैर्य से कहा, ‘दीपक मैं आ गई हूं। तू चाहे मार या रख मैं पक्के पैरी आ गई हूं। इन बच्चों के लिए दीपक, घर में दीया जलता रहने दे।’
दीपक का नशा उतर गया और उसकी आंखों में आंसू तैर गए। उस ने घुट कर पारो को गले लगा लिया तथा कहा, ‘पारो माफ करना, तू जो कहेगी वह ही होगा। इन बच्चों के लिए दीया जलता रहेगा। कोई आंधी इस दिए को बुझा नहीं सकती।’

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