कविता लक्ष्मीनारायण भाला ‘लक्खी दा’
जाह्नवी फरवरी 2023 गणतंत्र विशेषांक
जिस मां ने अपना पुत्र समर्पित,
कर दिया भारत मां को।
उस माता के परलोक गमन ने,
किया व्यथित भारत को।।
हीराबा ने जिस हीरे को,
मनसे था खूब तराशा।
कंधा दे, व्यथित हृदय था, पर
मानस में नहीं हताशा।।
भारी मन सेे अग्नि देना,
था पुत्रधर्म का पालन।
कर्तव्य भाव से राजधर्म का,
किया त्वरित अनुपालन।।
मातृ, पुत्र और राज धर्म का,
यह त्रिवेणी संगम है
ऐसे व्यक्तिवों से ही,
भारत का मस्तक उन्न्नत है।।
मस्तक को उन्नत रखने का,
संकल्प संघ ने धारा।
भारत मां के चरणों में,
शत-शत पुत्रें को है वारा।।