कविता लक्ष्मी प्रसाद गुप्त ‘किंकर’
मार्च, 2023
नवसंवत विशेषांक
गोरक्षण हित लिया जो, साहित्यिक संकल्प।
राष्ट्र सुसंस्कृति का सफल, होगा कायाकल्प।।
भारत भूषण नाम का, हुआ सार्थक अर्थ।
संस्कृति-हित अक्षर-जगत, होगा पूर्ण समर्थ।।
जाह्नवी जाह्नवी सी सलिल, बहे जाह्नवी-धार।
जाह्नवी से भू-भारती, का होगा उद्धार।।
भारत हुआ स्वतंत्र पर, संस्कृति है परतंत्र।
कलम-धार से ही सुधर, सकता शासन तंत्र।।
नेताओं को रह गया, दल का पद का ध्यान।
भारत माता रो रही, इतना भी नहिं ज्ञान।।
गाय प्रकृति की सौम्यता, का है सलिल स्वरूप।
धरती को वरदान सा, गोधन ईश्वर-रूप।।
गोबर अरू गोमूत्र है, हरित धरा का प्राण।
गव्य हव्य अरु यज्ञ का, है विज्ञान प्रमाण।।
प्राणवायु का स्रोत है? पावन यज्ञ-विधान।
यज्ञ वृष्टि का हेतु है, यह गीता का ज्ञान।।
गोधन पर्यावरण का, चलता फिरता तीर्थ।
गोधन मानव-धर्म का, सबसे बड़ा सुतीर्थ।।
गोधन मानव-मित्र है, गोधन जीवन-सूत्र।
जग को जीवन दे रहा, आज शुद्ध गोमूत्र।।
दूध दही है गाय का, पूरा अमृत रूप।
गोघृत से बढ़ कर नहीं, औषधि दिव्य स्वरूप।।
दो थन बछड़ों के लिये, देती है गोमात।
दो थन जग को दुग्ध दे, ऐसी जगत-सुभात।।
आंगन की किलकारियों, के रक्षण का तंत्र।
पावनतम गोदुग्ध है, पूरा जीवन-मंत्र।।
धरती बंजर हो रही, खाद रसायन डार।
गोधन को हो रहा है, धरती पर संहार।।
प्रकृति कुपित हो रही है, भू का कंपित गात।
गो की आह पुकार से, करती है प्रतिघात।।
वोट-शक्ति से कीजिये, राष्ट्रघात पर चोट।
प्रखर लेखनी ये हरो, गोघाती हर खोट।।
गोरक्षा है राष्ट्र-हित, राष्ट्रवाद का अंग।।
राष्ट्रवाद को ही मिले, हर नेता का संग।।