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जय गणतंत्र

कविता सुरेश चन्द्र ‘सर्वहारा’

जाह्नवी फरवरी 2023 गणतंत्र विशेषांक

जय जय हे गणतंत्र हमारे
जय जय भारत देश!


भिन्न-भिन्न भाषाएं तेरी
भिन्न धर्म के लोग,
तरह-तरह की संस्कृतियों का
है तुझमें संयोग।
कहीं और दिखलाई पड़ता
ऐसा न परिवेश।
जय जय हे———–!


निर्भय है आवाज तुम्हारी
निर्णय है निष्पक्ष,
आदर्शो का रूप अनुपम
तुम जग में प्रत्यक्ष।
जीते हो तुम सिर ऊंचाकर
हर गुट से निरपेक्ष।
जय जय हे————–।


एक देश है एक नियम है
एक तुम्हारा न्याय,
संविधान के पृष्ठ पृष्ठ का
समता है अभिप्राय।
संप्रभुता का आदर करते
तेरे सभी प्रदेश।
जय जय हे————।


रक्षा तेरी सदा करेंगे
गाएंगे जय गान,
बना तिरंगे को लेंगे
हम जीवन की पहचान।
नहीं जान देने में तुझ पर
हिचकेंगे लवलेश।
जय जय हे—–।


नहीं चाहते तुम दुनिया में
आपस में हो युद्ध,
मानवता के संवर्धन में
रहते सदा प्रबुद्ध।
दुःख सहकर भी हरते हो
तुम मानवता के क्लेश।
जय जय हे—————–।

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