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अगस्त, 2023
स्वाधीनता विशेषांक

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प्रत्येक मास किसी एक विषय पर पाठकों/विचारकों/लेखकों से उनके
विचार आमंत्रित किए जाते हैं तथा उन्हें सम्पादित कर प्रकाशित किया
जाता है। पुरस्कृत प्रविष्टि को 250 रु. का नकद पुरस्कार भेजा जाएगा।
अक्तूबर 2023 अंक का विषय है :-
उत्सव हमारे नीरस जीवन में आनन्द का स्रोत है
आप अपना मत अधिकतम 300 शब्दों तक लिख कर
15 सितम्बर 2023 तक जाह्नवी कार्यालय में डाक/कोरियर/ई-मेल से भेजें।
सितम्बर 2023 अंक का विषय है:-
हिन्दी की उपेक्षा से हम अपनी संस्कृति की भी उपेक्षा करने लगते हैं
भेजने की अंतिम तिथि-15 अगस्त 2023
जाह्नवी (मासिक)WZ-41, दसघरा, नई दिल्ली-110012
Email – jahnavi1966@gmail.com

अगस्त अंक का विषय

स्वतंत्रता अर्थात ‘स्व का तन्त्र’। यहां ‘स्व’ से क्या अभिप्राय है?

पुरस्कृत

स्वराज में
स्व-तंत्र का विकास
अति आवश्यक

स्वराज अर्थात अपना राज्य अथवा अपने लोगों द्वारा संचालित राज्य और स्व-तंत्र का अर्थ है भले ही अपने लोगों द्वारा चलाया गया हो परन्तु वह राज्य की अपनी पद्धति से चला रहे हों। संसार में आर्थिक दृष्टि से मुख्यतः दो पद्धतियाें की अधिक चर्चा होती है। एक साम्यवादी पद्धति है, दूसरी पूंजीवादी पद्धति है। परन्तु भारत की एक अपनी पद्धति है। वह दोनों से भिन्न है। किसी भी देश का राज्य किस तंत्र के अधीन चलता है अर्थात् किस पद्धति से चलता है। यदि वह अपनी जड़ों से विकसित हुई पद्धति से चलता है वह अधिक गति से विकास करता है।
सामाजिक दृष्टि से भी दो पद्धति है एक अधिनायक वाद की पद्धति है दूसरी लोकतंत्र की पद्धति है। दुनिया के देशों में दोनों प्रकार की राज्य पद्धतियां चलती है। भारत की पद्धति यहां भी दोनों से भिन्न है। भारत की प्राचीन विरासत में लोकतंत्र है। आज के लोकतंत्र में थोड़ा सुधार कर के इसे भारत की प्राचीन लोकतंत्र बनाया जा सकता है। हमारे देश के लोकतंत्र में किसी भ्रष्ट व्यक्ति को किसी संवैधानिक पद तक पहुंचने का कोई विधान ही नहीं है। ऐसे अनेक सुधार करके इसे दुनिया के लिए आदर्श लोकतंत्र बनाया जा सकता है।
हर देश की अपनी एक परंपरा रही है, बिट्रेन, फ्रांस, जापान सभी अपनी परम्पराओं पर नाज करते हैं। उन्हें अपनी परम्पराओं पर गर्व है। इसलिए उन्होंने विश्व में तरक्की की है। भारत भी यदि अपनी परम्पराओं का विचार कर आज के तंत्र में भारत की परम्पराओं का समावेश कर ले तो भारत को दुनिया में एक शीर्ष स्थान सहज ही प्राप्त हो जाएगा।
आज अपने देश में स्वराज्य तो है परन्तु तंत्र पूरी तरह से भारत की परम्पराओं का नहीं है, अभी मोदी जी के आने से भारत अपनी संस्कृति अपने परम्पराओं से जुड़ना प्रारंभ हुआ है, तो हमारी प्रगति को दुनिया सराहने लगी है।
अतः हमारा मत है कि स्वराज्य के साथ-साथ हम अपनी परपंरा के स्वतंत्र की ओर कदम बढ़ाएं तो प्रगति और भी गतिशील होगी। विकास में हर व्यक्ति का योगदान होगा। भौतिक एवं अध्यात्मिक दोनों दृष्टियों से भारत विश्व में एक शीर्ष स्थान प्राप्त करेगा।
-महिमा अद्वितीय, नई दिल्ली

अन्य चुनींदा प्रविष्टियां

स्वराज में स्व-तंत्र
का विकास
स्वराज का शाब्दिक अर्थ है -स्वशासन अर्थात् अपना राज। भारत में स्वतंत्रता संग्राम के समय यह शब्द अधिक चर्चित रहा क्योंकि इससे स्वतंत्रता प्राप्ति की प्रेरणा मिलती थी। स्वराज शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग महान देशभक्त एवं समाज सुधारक स्वामी दयानंद सरस्वती ने किया था। इस शब्द के माध्यम से प्रत्येक भारतवासी के हृदय में अंग्रेजी शासन के विरूद्ध संघर्ष करने के लिए ऊर्जा भरी गई थी।
महात्मा गांधी ने स्वराज की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए कहा था-‘स्वराज का अर्थ स्वशासन से है और यह तभी संभव है जब देश स्वतंत्र हो और वहां देशवासियों का अपना शासन हो।’ स्वराज का महत्व स्वतंत्रता से कहीं अधिक है क्योंकि इसमें स्वशासन के साथ आत्मसंयम है, अनुशासन है और सभी देशवासियों की उन्नति का भाव समाहित है। आर्थिक समानता, अहिंसापूर्ण समाज की कुंजी है। महान देशभक्त एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बाल गंगाधर तिलक का कथन ‘स्वतंत्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है’, देश को विदेशी शासन से मुक्त कराने और स्वराज की स्थापना के लिए प्रेरित करने के लिए विशेष महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ।
देश 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजी शासन से मुक्ति पाकर स्वतंत्र हो गया था किन्तु स्वराज स्थापना का सपना आज तक अधूरा ही है। इसका प्रमुख कारण यह है कि स्व-तंत्र अर्थात अपनी शासन प्रणाली सुचारू रूप से सुदृढ़, कल्याणकारी और समावेशी नहीं हो पायी।
अस्तु, हमें स्वराज की पूर्ण स्थापना के लिए गंभीर प्रयास करने होंगे। ज्ञान-विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास के साथ, नागारिकों में नैतिक मूल्यों का समावेश होना चाहिए। स्व-तंत्र को स्वस्थ, सक्रिय और सक्षम बनाया जाए तभी राष्ट्र का समुचित विकास संभव होगा।
-गौरीशंकर वैश्य विनम्र, लखनऊ

व्यक्ति की स्वतंत्रता ही राष्ट्र के विकास का आधार
स्वराज्य का अर्थ है अपना शासन। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने कहा था कि ‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा।’ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय प्रचलित यह शब्द अंग्रेजी राज से मुक्ति के संदर्भ में प्रचलित था। यह शब्द आत्मनिर्णय के अधिकार पर बल देता है। स्वराज या स्वराज्य शब्द राजनैतिक आजादी के लिए प्रयुक्त किया जाता है और इसका आधार यह है कि किसी भी देश पर दूसरे देश को शासन करने का अधिकार नहीं है।
स्वराज्य में शासन सत्ता विदेशी शासकों के हाथों से निकलकर, उसी देश के लोगों के हाथों में तो आ जाती है लेकिन देशवासियों के हितों और अधिकारों की ओर शासकों का ध्यान नहीं जाता। हमारे सामने साम्यवादी देशों के कई उदाहरण हैं, जिनमें पूंजीपतियों के हाथों से सत्ता छीनने वाले ही निरंकुश शासक बन बैठे और सर्वहारा वर्ग को अधिकारों से वंचित कर दिया गया। इन देशों में एक दल और उसके नेता की ही मनमानी चलती है और जनता की स्वतंत्रता का कोई महत्व नहीं है।
अतः सभी नागरिकों की प्रगति में ही राष्ट्र का विकास निहित है। लोगों को लगना चाहिए कि शासन का तंत्र उनका स्वयं का है। यह ‘स्व-तंत्र’ की भावना लोगों में राष्ट्र के प्रति भक्ति उत्पन्न करती है।
सुरेश चन्द्र ‘सर्वहारा’, कोटा (राज.)

स्वराज्य में भी स्व-तंत्र का विधान होने से ही राष्ट्र का विकास संभव है
राज्य की छोटी-छोटी इकाई से मिलकर राष्ट्र का निर्माण होता है। राज्य के कार्यो को राज्य सरकार द्वारा नियंत्रित करने से राष्ट्र की व्यवस्था सुचारू रूप से चलती है। प्रत्येक राज्य में स्वतंत्र विधान जैसे प्रशासनिक विधायी और न्याय प्रणाली होने से सुरक्षा, स्वास्थ्य सेवा, राजस्व सृजन आदि होने से बेहतर सेवाएं जनता को प्राप्त होती हैं।
राष्ट्र के विकास के लिए राज्य में अपना तंत्र होना राष्ट्रीय हित में है। देश की उन्नति तभी संभव है जब राज्य का हर नागरिक में उत्साह पूर्वक कार्य करने की ललक हो और वह उस कार्य को यह सोचकर करें कि वह यह काम देश के लिए कर रहा है। राज्य में स्व-तंत्र होने का यह तात्पर्य बिल्कुल नहीं है कि हम सामाजिक नियमों की अवहेलना करें।
विकसित राज्य में संसाधनों की कमी नहीं होती। शिक्षा, रोजगार, सुरक्षा, तकनीकी, प्रौद्योगिकी, खाद्यान्न उत्पादन, परिवहन संसाधन, पानी, बिजली, सुरक्षा, चिकित्सा सभी पर समुचित ध्यान दिया जाता है। राज्य में स्वतंत्र का विधान होने से भ्रष्टाचार की संभावनाएं समाप्त हो जाती हैं। पर्यावरण संरक्षण, जल संरक्षण, जैविक खेती, गौ संरक्षण को बढ़ावा मिलता है। राज्य की योजनाओं का लाभ जल्दी हर व्यक्ति तक पहुंचता है। योजनाएं भी राज्य की भौगोलिक स्थिति तथा जलवायु को देखकर बनाई जाती है उनका कार्यान्वयन किया जाता है। स्वराज्य में स्व-तंत्र का विधान व्यक्ति को समाज और राज्य के सदस्य के रूप में प्राप्त होता है। नागरिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है। राज्य में स्वतंत्र न्याय, कानून व्यवस्था, औद्योगिक क्रांति, व्यवसायिक विकास, स्वास्थ्य और मनोरंजन जनहित स्वास्थ्य, शिक्षा, समाज कल्याण आदि का कार्य विधिवत रूप से संचालित किए जाते हैं। राष्ट्र का विकास तीव्र गति से होता है। सभी राज्य सरकार द्वारा उत्कृष्ट कार्य करती है। जिससे हमारा देश दुनिया का सिरमौर बनने के लिए संकल्पित है।
-रेखा सिंघल, भेल, हरिद्वार

स्वतंत्रता अर्थात ‘स्व का तंत्र’
‘देश हमें देता है सब कुछ,
हम भी कुछ देना सीखे’
स्वतंत्रता शब्द का अंग्रेजी पर्याय ‘लिबर्टी लेटिन भाषा का ‘सिजर’ शब्द से बना है जिसका अर्थ है मुक्त या स्वतंत्र या बन्धनों का अभाव होता है। स्वतंत्रता का अर्थ है प्रतिबन्धों का न होना। बिना किसी बाधा के अपने व्यक्तित्व को प्रकट करने के अधिकार का नाम स्वतंत्रता है। स्वतंत्रता का अर्थ स्वच्छन्दता नहीं, सब के साथ जीना और सबके साथ चलना है। देश की स्वतंत्रता और अखण्डता का यही मूल मंत्र है। स्वतंत्रता वह है जो मुक्ति के साथ-साथ अपने नागरिकों को शिक्षित भी करे और संस्कारित भी।
स्वतंत्रता की आकांक्षा व्यक्ति की आदिम आकांक्षा है। समूह में सहयोग सहकार से काम करते हुए भी उसने वयैक्तिक विकास के लिए व्यक्ति की स्वतंत्रता को सर्वाधिक महत्व दिया है। स्वतंत्रता सबसे बड़ा मानवीय मूल्य है। स्वतंत्रता एक उत्कृष्ट मानवीय मूल्य है जिसकी हर किसी को तलब रहती है। परतंत्रता विकास की बाधक है जबकि स्वतंत्रता चिन्तन को नए पंख देती है। स्वतंत्रता का मूल्य स्वतंत्रता के वातावरण में ही सिखाया जा सकता है।
देश के करोड़ों लोगों ने 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता की रश्मि के दर्शन किए। परन्तु आज भी देश के सम्मुख अनेक चुनौतियां विद्यमान हैं जिनका निराकरण आवश्यक है। हमारा लोकतंत्रत्मक गणराज्य उसी स्थिति में सफल हो सकेगा जब नागरिक अपने कर्तव्य के प्रति सचेष्ट रहे। परन्तु यह देखा गया है कि व्यक्ति अपने अधिकारों के प्रति तो सजग रहते हैं परन्तु कर्तव्यों को भूल जाता है। हर प्राणी बन्धन अन्तर्मन से स्वीकार नहीं करता। पशु पक्षी भी स्वाधीन बन्धन-मुक्त रहना चाहते हैं।
मानव को संसार में सबसे श्रेष्ठ बुद्धि सम्पन्न प्राणी माना जाता है। मानव हर तरीके से स्वतंत्र होकर जीना चाहता है। स्वराज्य प्रणाली में लोकहित प्रमुख तत्व होता है। लोक कल्याण के लिए यह अपरिहार्य है कि देश का प्रत्येक नागरिक अपने अधिकारों के साथ कर्तव्यों का पालन करे तभी स्वशासन सफलता की सीढ़ी पर पहुंच सकता है। हर नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह देश की प्रभुता, एकता और अखण्डता की रक्षा करें। स्व का अर्थ है-अपना, निज का, सेल्फ, ‘स्व’ का मतलब होता है स्वयं की पहचान, स्वयं का व्यक्तित्व, स्व किसी व्यक्ति के संपूर्ण व्यक्तित्व की पहचान की ओर संकेत करता है।
आज हम अपने चमन के स्वयं माली हैं। परन्तु कुर्बानी के बदले में जो स्वराज मिला है, उसे अक्षुण्ण बनाए रखना हमारा परम कर्तव्य है। परिस्थितिवश स्वतंत्र देश के आकाश में आतंकवाद के बादल मंडरा रहे हैं। कुछ हमारी राष्ट्रीय एकता और अखण्डता को खण्डित करना चाहते हैं। ऐसे अवसर पर हमें अपना व्यक्तिगत भेदभावों को भूल कर एक जुट होकर आतंकवाद का सामना करना चाहिए। किन्तु हमें हर पल याद रखना है जिस को न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है वह नर नहीं, पशु निरा है और मृतक समान है।
राष्ट्र प्रथम’ का भाव हमारे चिन्तन का मूल मंत्र बना रहना चाहिए।
-शशिकांत द्विवेदी ‘आमेटा’ लोहारिया (राज.)

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