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जनता का मंच——हिन्दी की उपेक्षा से हम अपनी संस्कृति की भी उपेक्षा करने लगते हैं

सितम्बर 2023 अंक का विषय
हिन्दी की उपेक्षा से हम अपनी संस्कृति की भी उपेक्षा करने लगते हैं

पुरस्कृत

किसी भी देश की संस्कृति भाषा से ही सुरक्षित
रहती है

हिन्दी भारत का प्रांणतत्व है। किसी भी प्रकार से इसकी सुरक्षा और संरक्षा करनी जरूरी है और इसके लिए एक ही रास्ता है कि हिन्दी को राष्ट्र के साथ जोडें़। जब तक हम हिन्दी को उचित सम्मान नहीं देंगे, तब तक हम विकसित देशों की पंक्ति में खड़े नहीं हो सकते। हिन्दी हमारी मातृभाषा है, हमारी स्वयं की तैयार की हुई भाषा है। इसके प्रत्येक शब्द में हमारी संस्कृति की महक है। हिन्दी हमारी पावन संस्कृति की संवाहिका है। अतः हिन्दी भाषा को ही अपनाकर हम हमारी संस्कृति के साथ न्याय कर सकते हैं और इस से ही हम हमारी संस्कृति को अपने जीवन में पूर्णतया धारण कर सकते हैं। हिन्दी भाषा हमारी विचार संस्कृति की स्वतंत्रता, राजनीतिक चेतना, राष्ट्रीय स्वाभिमान, राष्ट्रीय सद्भावना, राष्ट्रीय एकता, राष्ट्रीय आदर्शो एवं सृजनशीलता, जनता की धड़कनों और प्राणों की संवाहिका है।
हिन्दी विश्व की सर्वाधिक भाषाओं में से एक है। भाषा के बिना किसी भी संस्कृति, परम्परा या सभ्यता को जीवित नहीं रखा जा सकता। कन्हैयालाल सेठिया के अनुसार-‘भाषा ही वह डोर है जो हमें जोड़ सकती है, अपनी जड़ों से।’ मारीशस के हिन्दी कवि के शब्दों में -‘हिन्दी है देवों की वाणी, परम पुरातन सुखद सुहानी। हिन्दी उतनी ही पावन है, जितना मां गंगा का पानी।’ राष्ट्र की अखण्डता और एकता के लिए राष्ट्र भाषा की परम आवश्यकता है।
डॉ- भीमराव अम्बेडकर के विचार कितने सार्थक हैं-‘किसी भी देश की संस्कृति भाषा से ही सुरक्षित रहती है। यदि भारत को एकता के सूत्र में बांधे रखना है और यहां की मिली-जुंली संस्कृति का निर्माण करना है तो सभी को हिन्दी भाषा स्वीकार करनी होगी।’ हिन्दी राष्ट्र के भविष्य की नींव है। अतः राष्ट्र की नींव को सुदृढ़ करना हमारा कर्तव्य है।
हिन्दी में जान है, वह जीवित भाषा है। हिन्दी साहित्य में हमारी प्राचीन संस्कृति निहित है। सुमित्रनन्दन पंत के अनुसार-‘हिन्दी हमारे राष्ट्र की अभिव्यक्ति का स्त्रेत है। विश्व की दस सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में तीन बड़ी भाषाएं भारतीय उपमहाद्वीप में बोली जाती हैं तथा विश्व में बोली जाने वाली दूसरी सबसे बड़ी भाषा हिन्दी है।
‘निःसंदेह अंग्रेजी एक समृद्ध भाषा है। इस भाषा के पास साहित्य की कोई कमी नहीं है। यह ज्ञान की भाषा है। भारतवासी को अंग्रेजी का विरोधी नहीं, अंग्रेजियत का विरोध होना चाहिए। जो लोग हिंदी की उपेक्षा कर एक विदेशी भाषा के वर्चस्व के नीचे दबे हुए हैं, वे विदेश मे जाकर देखे तो उन्हें आभास होगा कि उनकी स्थिति कितनी हास्यास्पद है। भाषा स्वयं में पारस्परिक विचार-विनिमय का चिन्तन मनन (साध्य) और विभिन्न विषयों की शिक्षा-दीक्षा साधन का माध्यम होने के कारण व्यक्ति या एक ही भाषा भाषी मानव समूह का स्वभाषा (मातृभाषा) के प्रति गहन भावनात्मक लगाव होना स्वाभाविक है। अंग्रेजी को अपनाकर न तो हम अंग्रेजी में संस्कारित हो सकते हैं और न ही अपनी संस्कृति को बरकरार रख सकते हैं।
हिन्दी दिवस ‘हिन्दी भाषा को सशक्त बनाने के लिए मनाया जाता है। पूरे वर्ष जिस भाषा की उपेक्षा की जाती हो, एक ही दिन में वह सशक्त कैसे बन जाएगी? केवल एक दिन भाषण देने से हिन्दी की प्रगति नहीं हो सकती। भविष्य किसी भी भाषा का नहीं होता, उसका भविष्य हम बनाते हैं। एक तरफ तो हम अपने देश का गुणगान करते नहीं थकते—सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्ता हमारा दूसरी ओर मातृभाषा की उपेक्षा तलधर में बंद कर (कैद कर) पराई माँ को सम्मान दे रहे हैं।
-शशिकान्त द्विवेदी ‘ओमटा’, लोहारिया (राज-)

अन्य चुनींदा प्रविष्टियां

हिंदी भारतीय संस्कृति की प्राण तत्व है
कहते हैं कि हमारे संस्कार हमारी संस्कृति पर निर्भर है। और हमारी संस्कृति हमारी भाषा हमारा पहनावा और हमारे शास्त्रें से चरितार्थ है।
आधुनिकता की दौड़ में शामिल होकर हम कहीं न कहीं हिन्दी की उपेक्षा करते रहते हैं। संस्कारों का आदान-प्रदान लोक गीतों के माध्यम से, रीति रिवाजों के जरिए एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाकर ही हमारे पूर्वजों ने संस्कृति को बचाया हुआ है।
हमारा विवाह संस्कार, नामकरण संस्कार, पूजा पद्धति, वेदों और शास्त्रें का ज्ञान हमारी संस्कृति को बढ़ावा देता है।
पर हिंदी की उपेक्षा करके हम संस्कृति को धरातल में धकेल रहे हैं। आजकल माता-पिता अपने बच्चों से विदेशी भाषा में बात करना अपनी शान समझते हैं। आगे बढ़ने के लिए विदेशी भाषाओं का ज्ञान होना अनिवार्य है। पर इसका यह मतलब नहीं कि हम अपनी मातृभाषा की उपेक्षा करें। जितना अपनापन हम अपनी मातृभाषा में देखते हैं वह और कहीं नहीं है। उदाहरण स्वरूप हम दोनों हाथों को जोड़कर, झुककर जब किसी का अभिवादन करते हैं तो सामने वाले को हमारी संस्कृति और सभ्यता पर गुमान होता है। और एक भावनात्मक लगाव भी कहीं न कहीं बनता है। हमारी हिंदी भाषा बहुत मीठी है, सबसे मिठास करने का हुनर इस भाषा की जड़ है हिन्दी को बढ़ावा देकर हम हमारी संस्कृति को बचा सकते हैं। और इसकी पहल हमें अपने घर से अपने बच्चें को साथ लेकर करनी होगी। समय-समय पर हमारेे कवियों ने अपनी कविताओं के माध्यम से हिन्दी को गौरवान्वित किया है। लोकगायकों ने लोकगीत गाकर अपने तीज त्यौहारों को एक महान संस्कृति में पिरोया है। अगर हमें अपनी संस्कृति को इतिहास बनने से रोकना है तो हमें अपनी मातृभाषा पर काम करना होगा तभी हमारी संस्कृति फल फूल पाएगी।
-मंजू गुप्ता, वेरावल गिर सोमनाथ (गुज-)

निज भाषा पर गर्व कीजिए और अपनी संस्कृति का गौरव बढ़ाइये
भारत अपनी समृद्ध संस्कृति और परंपराओं के लिए दुनिया भर में जाना जाता है। निसंदेह इस महान देश की सांस्कृतिक समृद्धि में हमारी भाषा हिंदी चार चांद लगा देती है।
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा, हमारी मातृभाषा, हमारा गौरव और सांस्कृतिक विरासत है। हमारी भाषा देश की संस्कृति और संस्कारों का प्रतिबिंब है। आज विश्व के कोने-कोने से विद्यार्थी हमारी भाषा और संस्कृति को जानने के लिए हमारे देश का रूख कर रहे हैं। हिंदी ही एक अकेली वह भाषा है जो जैसी बोलते हैं वही लिखते हैं।
भाव और भावनाओं को सुगढ़ता से प्रदर्शन करने वाली राष्ट्र भाषा की ध्वजा है। जो गंगा सी निर्मल और पवित्र है। जो सभी के दिलों को छू कर निर्मल कर देती है। आकाश से भी विशाल हृदय वाली हिंदी सभी प्रादेशिक शब्दों को अपने में समा कर सबकी प्रिय बन जाती है और हम सब कहने को मजबूर हो जाते हैं——
जब तक जुबान में सांसों में ताने,
हम हिंदी के गाते रहेंगे तराने—।
आज तकनीकी का युग है, सारा विश्व तकनीकी के बल पर एक है। आने वाली पीढ़ी ने अपने पांव विभिन्न देशों में फैला लिए हैं। कहीं वह शिक्षा ग्रहण कर रहा है तो कहीं नौकरी। युवा पीढ़ी को दूसरे देशों की भाषाएं खासकर अंग्रेजी बहुत लुभा रही है। भारतवर्ष में भी अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों की भरमार हो गई है। हर बच्चा अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में शिक्षा प्राप्त करना चाहता है और समाज में अंग्रेजी माध्यम मे ंपढ़े हुए बच्चों का बोलबाला है। हम अपनी हिंदी को भूलते जा रहे हैं। जहां जाते हैं वहां की भाषा व संस्कृति को अपनाने लगते हैं। विदेशी संस्कृति पर गर्व करने लगते हैं और अपनी हिंदी अपनी हिंदी के साथ-साथ अपनी संस्कृति की भी उपेक्षा करने लगते हैं।
चिंता का विषय तो यह है कि सारा समाज ही विदेशी संस्कृति के पीछे भाग रहा है, सभी को पाश्चात्य जीवन शैली और भाषा लुभा रही है।
हम एक हिंदी बोलने वाले होनहार बुद्धिमान की अपेक्षा एक साधारण अंग्रेजी बोलने वाले को अधिक मान सम्मान देते हैं। न जाने क्यों हमारी मानसिकता में अपनी हिंदी के प्रति इतनी संकीर्ण भावना क्यों है? देखिए जैसे हर बच्चे को अपनी मां अच्छी लगती है क्योंकि मां उसे प्यार देती है उसे उसकी देखभाल करती है और उसे उन्नति देख प्रसन्न होती है। वैसे ही हमारी मातृभाषा राजभाषा हिंदी के प्रति हमारे विचार होने चाहिए। हिंदी अपनाकर हम अपनी संस्कृति का संवर्धन कर सकते हैं अपनी संस्कृति को संजोकर आने वाली पीढ़ी को धरोहर के रूप में सौंप सकते हैं निज भाषा राष्ट्र, भाषा मातृभाषा पर गर्व कीजिए और अपनी संस्कृति का गौरव बढ़ाइए।
-सुरेश चन्द्र, भेल, हरिद्वार


हिन्दी की उपेक्षा अर्थात संस्कृति की उपेक्षा
हिंदी हमारी भाषा ही नहीं, अपितु हमारी संस्कृति भी है। विश्व के 155 से अधिक देशों में हिंदी भाषियों की उपस्थिति से यह स्पष्ट है कि हिंदी कितनी लोकप्रिय और समृद्धिशाली भाषा है। हिंदी के नाम से लोग विदेशों में भारत को याद करते हैं और विशेष सम्मान प्रदान करते हैं। हिंदी भाषा ने ही देश और विदेश में भारतीय संस्कृति का केतु फहराया है। हिंदी और संस्कृति का सदैव से अन्योन्याश्रित संबंध रहा है।
विश्व की सबसे प्राचीन भाषा संस्कृत है और हिंदी उसकी सबसे दुलारी सुता है। हिंदी देवनागरी लिपि में लिखी जाती है और यह संस्कृत भाषा का ही सरल अनुवाद है। हिंदी को भले ही अन्य लोग मात्र भाषा मानते हों, किन्तु हमें इतना तो समझना ही चाहिए कि यह हमारी आर्य संस्कृति भी है। हिंदी की उपेक्षा का अर्थ होगा, अपनी संस्कृति की ही उपेक्षा करना।
हिंदी भारतीय संस्कृति की प्राण है क्योंकि किसी भी राष्ट्र की सभ्यता और संस्कृति का प्रतीक उसकी राष्ट्रभाषा-मातृभाषा होती है। हिंदी भाषा हमारी भारतीय संस्कृति का शृंगार और आभूषण की भांति सुशोभित है। हिंदी भाषा को समृद्ध करने में कबीर, सूर, तुलसी, नामदेव, भूषण, रहीम, मुक्ताबाई, मीराबाई, दयानंद, जायसी, रसखान, रैदास, जयशंकर प्रसाद, निराला जैसे संतों, देशभक्तों कवियों और मनीषी विचारकों ने अभूतपूर्व योगदान किया है। उन्होंने हिंदी भाषा के माध्यम से आर्य संस्कृति का प्रचार-प्रसार किया। अनेक साधु संत, धर्म प्रचारक, साहित्यकार आज भी हिंदी भाषा के माध्यम से संस्कृति को जनमानस तक पहुंचा रहे हैं। स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली हिंदी, आज देश की सांस्कृतिक और राजनीतिक एकता को सुदृढ़ कर रही है विविधता भरे इस देश में सांस्कृतिक, सामाजिक और राष्ट्रीय एकता लाने में हिंदी की भूमिका स्वयं सिद्ध है।
हम अपनी संस्कृति की व्याख्या जितनी सुगमता से अपनी भाषा में कर सकते हैं, उतनी विदेशी भाषाओं में नहीं कर सकते। मैकाले की शिक्षा पद्धति के कारण हमारे देश में शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी भाषा बन गई। इससे हिंदी भाषा की घोर उपेक्षा हुई और वह बहुत पीछे रह गई। फलतः देश में पश्चिमी संस्कृति छा गई। भारतवासी अपनी पुरातन आर्य संस्कृति को छोड़कर कर, पश्चिमी संस्कृति में डूब गए और स्वयं को भाग्यशाली समझ बैठे। जबकि यह सोच मात्र दिवास्वप्न ही सिद्ध हुई, वे घर के रहे, न घाट के। अंग्रेजी भारतीय परिवेश के अनुकूल भाषा नहीं है, क्योंकि हमारे देश की प्रमुख भाषा हिंदी ही है। सत्य यह है कि यदि भाषा भ्रष्ट होती है, तो संस्कृति निश्चित रूप से भ्रष्ट हो जाएगी। आज हिंदी को हिंग्लिश बना देने से अपनी संस्कृति भी अपमिश्रित हो गई है।
नई शिक्षा नीति 2020 में इस विसंगति को दूर करने का प्रयास किया गया है और अब प्राथमिक विद्यालयों से लेकर उच्च शिक्षा स्तर तक के पाठ्यक्रम हिंदी में निर्मित किए गए हैं। हिंदी शिक्षा को अनिवार्य बनाया जा रहा है। इस परिवर्तन से एक बार पुनः हिंदी का सम्मान बढ़ेगा और साथ ही भारतीय संस्कृति के पुष्पित पल्लवित होने का सुअवसर मिलेगा।
अंग्रेजी भाषा-संस्कृति से कोई व्यक्ति अच्छा अधिकारी, डॉक्टर या इंजीनियर तो बन सकता है किन्तु सहजता, शालीनता, सादगी, उदारता, मितव्ययिता और शिष्टाचार के गुणों से भरपूर अच्छा नागरिक नहीं बन सकता। शासकों में अपने सुसंस्कार जीवित न होने के कारण ही देश में घपले, घोटाले दमन, शोषण और भ्रष्टाचार का बोलबाला हुआ है। हिंदी भाषा और भारतीय संस्कृति से अनभिज्ञ व्यक्ति स्वयं को भारतीय न समझकर, विदेशी समझता है। अस्तु, राष्ट्रीय धरातल पर हिंदी की संग्रहिका शक्ति बढ़ाने से उसका सांस्कृतिक पक्ष मजबूत होगा। निश्चित ही हिंदी भाषा के सतत विकास से, देश की सांस्कृतिक और भावात्मक एकता सुदृढ़ होगी।
-गौरी शंकर वैश्य विनम्र, लखनऊ


अपनी सोच बदलनी होगी
भारत में हिंदी दिवस हर वर्ष 14 सितंबर को मनाया जाता है। हिंदी विश्व में बोले जाने वाली प्रमुख भाषाओं में से एक है। किसी भी राष्ट्र के सर्वांगीण विकास के लिए वहां की भाषा व संस्कृति का महत्वपूर्ण योगदान होता है। हिंदी भाषा विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली तीसरी भाषा है। हिंदी को देश में 1949 में सर्वोच्च दर्जा प्राप्त हुआ और तब से हिंदी को राष्ट्रभाषा माना जाता है।
हिंदी भाषा हमारे जीवन का अहम हिस्सा है, हमारी संस्कृति है। देश के हर घर में आमतौर पर बोली जाने वाली भाषा हिंदी है। भारत का हर नागरिक चाहे वह साक्षर हो या निरक्षर हिंदी भाषा को आसानी से बोल व समझ लेता है हिंदी भाषा की यही खूबी है कि इसको समझने में किसी को भी कोई परेशानी नहीं होती है।
हिंदी सुंदर, सरल, मीठी व सहज भाषा है। भले ही हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित कर दिया गया हो लेकिन आज भी लोगों को हिंदी बोलने में हीन भावना महसूस होती है। आज भी हिंदी को सम्मान देने में क्यों कंजूसी करते हैं। कब तक हिंदी अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए संघर्ष करेगी? आज हमारा देश स्वतंत्र है तो सरकारी और गैर सरकारी दफ्रतरों, स्कूलों, कालेजों में सारा कार्य हिंदी में होना चाहिए, जबकि ऐसा नहीं है।
हिंदी दिवस पर जन-जन को जागरूक कर सभी को हिंदी भाषा को बचाने का दृढ़ संकल्प करना चाहिए जिससे हमारी राष्ट्रभाषा की उपेक्षा न हो और हमें अपनी संस्कृति पर नाज हो। हिंदी को लोकप्रिय बनाने के लिए हमें अथक प्रयास करने होंगे। हालांकि सरकार ने काफी सारी प्रवेश परीक्षाएं हिंदी में करने का निर्णय लेकर हिंदी भाषा का मान बढ़ाया है और अब तो मेडिकल की पढ़ाई भी हिंदी में होने का निर्णय लिया गया है। हवाई अड्डा, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, अस्पताल, सरकारी दफ्रतर आदि में हिंदी व अंग्रेजी में घोषणाएं होती हैं जिससे हर हिंदुस्तानी को घोषणा समझ आए।
हिंदी संपूर्ण भारत को जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य करती है। पूर्वजों की धरोहर है हिंदी। हम अपने घरों में बच्चों से हिंदी में बात करेंगे तभी अपनी भाषा के महत्व को समझ पाएंगे और लगाव महसूस करेंगे।
भारत महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है गूगल का अनुमान है कि जिस गति से इंटरनेट पर हिंदी सक्रिय हुई है वह किसी चमत्कार से कम नहीं। हिंदी को अधिक सक्रिय बनाने के लिए हर भारतीय नागरिक को अपने घर में जगह देनी होगी यही हमारी अपनी राष्ट्रभाषा के प्रति सच्चा सम्मान होगा।
स्वतंत्र भारत में आज भी हिंदी की उपेक्षा की जाती है। स्कूल, कालेजों, दफ्रतरों में अंग्रेजी का बोलचाल का माध्यम बनाया जाता है। अंग्रेजी बोलने के आधार पर ही बच्चे को ज्ञानी माना जाता है और फिर कहीं जाकर उसे प्रवेश मिलता है। आज हम अंग्रेजी भाषा के हद से ज्यादा गुलाम बन गए हैं उसी के कारण अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी की उपेक्षा कर बैठते हैं और साथ ही अपनी संस्कृति की भी। हमें अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी व संस्कृति के प्रति निष्ठावान होना होगा। हर हिंदुस्तानी को अपनी सोच बदलनी होगी तभी हिंदी की दशा और दिशा में सुधार होगा। हर हिंदुस्तानी को अपने जीवन में हिंदी को अपनाने का प्रण करना होगा।
-शिखा अग्रवाल, देहरादून

अपनी भाषा का सम्मान करें
स्थानीय भाषा अगर ताल तलैया है तो हिंदी गंगा है, जहां स्थानीय भाषा मिलकर अपना अस्तित्व भी हिंदी में मिला देती है। हिंदुस्तान का अर्थ हिंदी भाषा है। हिंदी भारत की बिंदी है। हिंदी हमारी अभिव्यक्ति का बेहतर माध्यम है, हिंदी की व्यथा अपने ही देश में सोचनीय है। यहां अंग्रेजी भाषा के प्रति रूझान से हिंदी शर्मसार हो रही है वर्तमान समय में अमेरिका के 45 विश्वविद्यालय में हिंदी की पढ़ाई जारी है, फिर भी भारत में हिंदी में किताब छापना घाटे का सौदा है जबकि अंग्रेेजी में किताब छापना मुनाफे का सौदा है। हिंदी भारत की विविध भाषाओं में सर्वश्रेष्ठ है। हिंदी भारत का पर्याय है और हिंदी है हमारी अभिव्यक्ति का सर्वश्रेष्ठ माध्यम। वस्तुतः हिंदी भाषा ने भारत की आजादी में आंदोलनकारियों को एक सूत्र में बांधने का कार्य किया।
जब तक हम हिंदी को उपेक्षित करते रहेंगे हमारी संस्कृति भी उपेक्षित रहेगी। इसलिए हम बोल-चाल पहनावा, रहन-सहन, खान-पान जन्मोत्सव, विवाहोत्सव आदि हिंदी रीति रिवाज में ही होनी चाहिए अन्यथा हजारों साल भारत को तो इस्लाम ने शासन कर यहां की संस्कृति पर आघात किया, अंग्रेजों ने यहां की हमारी संस्कृति पर आघात किया, अब हम स्वतंत्र हैं तो हमारा दायित्व बनता है कि हम अपनी भाषा का सम्मान करें तथा अपनी संस्कृति को धूमिल होने से बचाएं तथा विश्व में हमारी हिंदी और हमारी भारतीय संस्कृति की चमक से भारत गौरवान्वित हो।
-सरिता राठौर, हैदरपुर, दिल्ली

भाषा हमारी सांस्कृतिक विरासत से जुड़ी है
हिंदी जन गण मन की आशा है आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति का माध्यम होने के साथ-साथ हमारी संस्कृति और अस्मिता की भाषा भी है। समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और विविधता पूर्ण भौगोलिक विस्तार वाले भारत में हिंदी सदियों से देश की एकता और अखंडता को सुदृढ़ करने के अलावा वसुधैव कुटुंबकम की भावना को प्रेरित और प्रसारित करती रही है। हिंदी समाज की जरूरतों से जुड़ी एक जीवन सशक्त और विकासशील भाषा है जिस पर हम सभी को गर्व है।
प्रौद्योगिकी के वर्तमान युग में युवा बहुत महत्वकांक्षी हो गया है वह दुनिया के नक्शे पर अपना नाम जगमग करता हुआ देखना चाहता है, जिससे वह दूसरी भाषाओं को सीखने में बहुत रूचि लेने लगा है। अपने भारत देश में भी अंग्रेजी माध्यमों के स्कूलों की झड़ी लग गई है। दूसरी भाषाओं का आकर्षण में सिर्फ युवा ही नहीं, उनके माता-पिता भी मायाजाल में बुरी तरह जकड़े हुए हैं। अंग्रेजी युवाओं की मानसिकता पर पूरी तरह से हावी हो गई है। आजकल अंग्रेजी बाजार के चलते दुनिया भर से हिंदी बोलने वालों अपने को अनपढ़ या गंवार के रूप में समझने लगे हैं। उन्हें अपनी संस्कृति और संस्कारों में खामियां नजर आने लगी है। रीति रिवाज, त्यौहार, परिवार को हीन समझने लगे हैं। अपनी सनातनी पूजा पद्धति में कमी निकालने लगे हैं। मंदिर जाना, पूजा करना, अपने धार्मिक ग्रंथ पढ़ना, मंत्र जाप करना अपने पहनावा, अपनी संयुक्त परिवार की परंपरा दकियानूसी लगने लगी है। अंग्रेजी बोल कर हम खुद को ज्यादा प्रगतिवादी समझने लगे हैं और अपनी संस्कृति को उपेक्षित करने लगे हैं। गणेश शंकर विद्यार्थी के शब्दों में पराई भाषा हमारे चरित्र की दृढ़ता का अपहरण कर लेती है। मौलिकता का विनाश कर देती है और नकल करने का स्वभाव बनाकर हमारे उत्कृष्ट गुणों और हमारी प्रतिभा को नष्ट कर देती है।
वास्तव में भाषा का प्रश्न केवल एक अभिव्यक्ति का माध्यम का प्रश्न नहीं है बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक विरासत और हमारे देश के लोगों के संस्कारों से जुड़ी हुई है। जब हम हिंदी बोलते हैं- हिंदी में खाते है, हिंदी में खेलते हैं और हिंदी में कार्य करते हैं। सच्चे हिंदुस्तानी कहलाते हैं दूसरी भाषाएं हमारे संस्कृति को कुंठित कर हमें अपंग बना देती है। व्यक्तित्व को गौण कर देती है।
-रेखा सिंघल, भेल, हरिद्वार

जनता का मंच
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प्रत्येक मास किसी एक विषय पर पाठकों/विचारकों/लेखकों से उनके
विचार आमंत्रित किए जाते हैं तथा उन्हें सम्पादित कर प्रकाशित किया
जाता है। पुरस्कृत प्रविष्टि को 250 रु- का नकद पुरस्कार भेजा जाएगा।
नवम्बर 2023 अंक का विषय है:-
पर्व-त्यौहार अनूठे संस्कार देते हैं——-।
आप अपना मत अधिकतम 300 शब्दों तक लिख कर
15 अक्टूबर 2023 तक जाह्नवी कार्यालय में डाक/कोरियर/ई-मेल से भेजें।
अक्टूबर 2023 अंक का विषय है:-
मिल जुल कर त्यौहार मनाएँ—————————
भेजने की अंतिम तिथि-15 सितम्बर 2023
जाह्नवी (मासिक)WZ-41, दसघरा, नई दिल्ली-110012
Email – jahnavi1966co@gmail.com

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