कविता प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे
मार्च, 2023
नवसंवत विशेषांक
नारी के शृंगार संग, चुनरी सोहे खूब।
लज्जा है, सम्मान है, परम्परा की दूब।।
रहती चुनरी में सदा, शील और निज आन।
चुनरी में बसते सतत्, अनजाने अरमान।।
चुनरी में गरिमा निहित, मर्यादा का रूप।
जिससे मिलती सभ्यता, को इक नेहिल धूप।।
चुनरी तो वरदान है, चुनरी तो अभिमान।
चुनरी नारी-शान है, चुनरी है इक गान।।
चुनरी तो बलवान है, चुनरी तो उत्थान।
चुनरी तो इक आस है, चुनरी में यशगान।।
चुनरी तो तलवार है, चुनरी तो है तीर।
चुनरी ने जन्मे कई, शौर्य पुरुष, अतिवीर।।
चुनरी में तो मां रहे, बहना-पत्नी रूप।
चुनरी में देवत्व है, सूरज की है धूप।।
चुनरी दुर्बल है नहीं, नहिं चुनरी बलहीन।
चुनरी कमतर नहिं कभी, और नहीं है दीन।।
चुनरी में इक तेज है, चुनरी बसा प्रताप।
चुनरी शीतल है बहुत, है चुनरी में ताप।।
चुनरी है ममतामयी, है करुणा का सार।
चुनरी में आकर बसा, पूरा ही संसार।।
चुनरी में तो धर्म है, जीवन का है मर्म।
चुनरी में तो सत्य है, है निष्ठामय कर्म।।
चुनरी की हो वंदना, होवे नित्य प्रणाम।
समझ सको, तो लो समझ, चुनरी के आयाम।।