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गौमाता के दूध में अमृतमयी गुण

जो भी मनुष्य इन पंचगव्यों का सेवन करता है। वह कभी भी अस्वस्थ नहीं होता। पंचगव्यों के अनेक लाभ हैं-पंचगव्यों में सबसे पहला स्थान गौ माता के दूध का आता है।

सितम्म्बर, 2023
राष्ट्रभाषा विशेषांक

गो संवर्धन चर्चा
सीमा स्वस्ति

योगी राज श्री कृष्ण ने गीता में स्पष्ट रूप से बताया है कि पशुओं में कामधेनु गौ ही देव गौ है। जैसा कि पहले भी बताया जा चुका है कि केवल गौ माता में ही 33 प्रकार के देवी देवताओं का वास है। तनिक विचार कीजिए कि जिस प्राणी के शरीर में देवी देवताओं का वास होगा, उसके द्वारा दिये गये गोमय तथा दुग्ध में कितना तेज बल तथा पवित्रता होगी।
श्रीमदभागवद गीता में श्री कृष्ण ने परमात्मा की अन्तहीन विभूतियों में एक विभूति गौ माता को माना है। गौ माता का स्थान चारों युग में सबसे ऊंचा ही रहा। इसी माता का दूध, गोमय, छाछ और घी का सेवन मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम, महावीर, गुरु नानक, महात्मा बुद्ध, योगी राज श्री कृष्ण ने किया था।
आखिर ये गव्य है क्या?
साधारण शब्दों में अमृत ही गव्य होते हैं, जो हमें अमरता की ओर ले जाते हैं। जो भी मनुष्य इन पंचगव्यों का सेवन करता है। वह अमरता की ओर अग्रसर हो जाता है। अर्थात कभी भी अस्वस्थ नहीं होता। पंचगव्यों के सेवन से हमारा शरीर स्वस्थ, मन नियंत्रित एवं भावनाएं न्यायकारी होती है। पंचगव्यों के अनेक लाभ हैं-पंचगव्यों में सबसे पहला स्थान गौ माता के दूध का आता है।
दूध-गौ माता के दूध का नाम लेते ही सौम्यता व सरलता चेहरे पर आ जाती है। गौमाता के दूध में अनेक गुण हैं।
(क) गौ दुग्ध को अमृत, पीयूष कहा गया है। क्योंकि इसमें सभी औषधियाें का सार है।
(ख) अथर्ववेद में स्पष्ट लिखा गया है कि यदि संसार में कोई अमृत है तो वह निश्चय ही गौदुग्ध है।
(ग) गौ-दुग्ध, जल, (पंचमहाभूत तत्वों में से एक) का प्रतिनिधित्व करता है।
(घ) गौ का दुग्ध पथ्य है अर्थात सब रोगों में सेवन करने योग्य है। मधुर रस वाला होता है।
गौ माता का दूध हृदय के लिए अत्यंत हितकारक है। वात्त और पित्त के विकारों का नाश करके इन्हें संतुलित करता है।
(ड़) नवजात शिशु, बीमारों, वृद्धों तथा गर्भवती स्त्रियों के लिए रामबाण औषधि है। इस में शरीर की वृद्धि और रोग निवारण के लिए आवश्यक अंश विद्यमान हैं।
(च) यह दूध सब गुणों का भंडार है। यह शरीर के लिए पोषक और आंतों के लिए शोधक का काम करता है। इसमें पाया जाने वाला ‘लैक्टिक’ नाम कीटाणु अत्यंत लाभदायक है। यह कीटाणु आंतों में दुर्गंध पैदा करने वाले कीड़ों का स्वरूप बदल कर उसका नाश करते हैं। अन्य विषैले कीटाणुओं को भी नष्ट करते हैं।
(छ) गौ दुग्ध केवल आहार ही नहीं दवा भी है। इसमें वात, पित्त तथा कफ (त्रिदोष) को संतुलित करने की गजब की शक्ति है। अमेरिका तथा यूरोप में दूध द्वारा ही चिकित्सा करने के चिकित्सालय खुलते जा रहे हैं।
(ज) दूध के वे हिस्से जो दूध से पृथक नहीं हो सकते और जीवन तत्व हैं। उन्हें विटामिन कहा जाता है।
विटामिन ए-यह चिकनाई में मिला हुआ पाया जाता है, जो छोटे बच्चों की शरीर की वृद्धि के लिए बहुत आवश्यक है।
विटामिन-बी$सी-यह गाय के दूध के पानी में घुला रहता है। इस पर ताप, प्रकाश और तेजाब का असर बहुत कम होता है।
विटामिन डी-यह भी चिकनाई में मिला हुआ होता है। यदि गौ दुग्ध आहार में शामिल न करें तो रिकेट रोग (हड्डियों का कमजोर और टेढ़ा होना) हो जाता है।
(झ) गो दुग्ध के पाचक रसों को एंजाइम्स कहते हैं। ये पांच प्रकार के हैं। 1- गैलक्टोज 2- लाईपेज 3- कैटेलेज 4- रिडक्टेज 5- पर-आक्सीडेंज। ये बहुत सूक्ष्म अणुओं के रूप में होते हैं।
(ण) गाय के दूध में हड्डी और दांतों के लिए कैल्शियम की पूरी मात्र है। दूध के क्षार द्रव्य हमारे शरीर के क्षारों की आवश्यकता को विशेषतः कैल्शियम की कमी को पूरा करते हैं।
(त) मानव शरीर की आंतों में दो प्रकार के कृमि पाये जाते हैं। एक मित्र कृमि और दूसरे शत्रु कृमि कहलाते हैं। मित्र कृमियों का काम शरीर की रक्षा करना है। गौ दूध मित्र कृमियों में बढ़ोत्तरी करता ही रहता है और शत्रु कृमियों का नाश करता है।
(थ) गौ दुग्ध 18 मिनरल कंपाऊंड का मिश्रण है। यह वह विज्ञान है जिसके आगे विज्ञान ने भी सिर झुकाया है। ये सभी सूत्र वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित हैं।
(द) उपरोक्त सूत्र तो शारीरिक रूप से स्वस्थ होने के थे। आपको यह जान कर आश्चर्य होगा कि गौ माता के दुग्ध से शारीरिक विकार तो दूर होते ही हैं साथ ही साथ मानसिक विचारों की जो उन्नति होती है वह लाजवाब है। पंचगव्य लेने वाला व्यक्ति कब आध्यात्मिक मार्ग की ओर अग्रसर हो जाता है, उसे स्वयं पता नहीं चलता। सिद्धार्थ की माता सुजाता ने सौ गोओं का दूध आठ सौ गौओं को पिलाया। आठ सौ गौओं का दूध चार सौ को पिलाया, इस प्रकार करते-करते क्रमशः आठ गौओं को पिलाया। इन्हीं आठ गौओं के दूध की खीर सुजाता ने सिद्वार्थ को खिलाई जिससे उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ और महात्मा बुद्ध बन कर संसारवासियों का मार्गदर्शन किया। उन्होंने स्वयं मुक्ति का मार्ग देखा और हम सभी को उस पर चलने के लिए प्रेरित किया। गुरु नानक देव को भी गाएं चराने में ही ज्ञान की जागृति हुई। योगी राज श्री कृष्ण का बाल्यकाल गौओं के बीच ही गुजरा और उन्होंने श्री मदभगवदगीता जैसा अतुल्य अनमोल और महान ग्रन्थ हमें दिया।
जैसा कि पहले भी बताया जा चुका है कि गौमाता में 33 देवी देवता का वास है और केवल इसी प्राणी में सूर्य केतू नाड़ी है। वेद, स्मृति तथा पुराणों में गौ महिमा भरपूर है। सायणाचार्य ने वेदों की जो व्याख्या की है उसमें वे लिखते हैं कि सृष्टि के आदि में मनुष्य व गाय दोनों आये। दोनों चुप थे। तो पहले गौ बोली उसके सहारे मनुष्य ने मुख खोजा एवं मनुष्य को गाय से बोली प्राप्त हुई।

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