लेख पूनम पांडे
अनमोल समय है, इसलिए इस प्रकार के नृत्य के लिए न तो
कोई हिचकिचाहट होनी चाहिए, और न ही शर्माना चाहिए।
अप्रैल 2023
शिक्षा विशेषांक
इस प्रकृति ने हम सबको आनंद में पुष्पित और पल्लवित होने के लिए ही बनाया है। हम सभी के मन में संगीत सुनकर जरा-जरा सा झूमने और मनपसंद संगीत पर तो थिरकने नाचने आदि का जन्मजात भाव होता है किन्तु जीवन की आपाधापी ऐसी है कि कभी-कभी यह भाव अपनी व्यस्तता, परिस्थिति एवं इतर कारणों से खुल कर नहीं कर पाता या झूम उठने के इस भाव को दबा देता है या संकोच के कारण थिरकना छोड़कर कन्नी काटकर निकल जाता है। इसका एक सुंदर उपाय है सबके साथ मिलकर नाचना और अपने मन को खूब हल्का कर लेना ऐसा कि मन और तन हो जो एकदम फूल जैसा या रूई जैसा। जैसे सांस सांस तक आनंद से भर जाती है गरबा, डाडिया नृत्य करते समय।
आजकल हर गली मुहल्ले और कालोनी में सामूहिक उत्सवमय नाच अवश्य ही होता है। एक रिर्पेाट के अनुसार नवरात्र पर भारत में हर साल एक औसत नगरपालिका क्षेत्र में लगभग दो सोै छोटे बड़े सामूहिक गरबा रास नृत्य होते हैं। इस हिसाब से कम से कम बीस लाख गरबा नृत्य पूरे भारत में इन नौ दिनों में होते ही हैं। एक न्यूज चैनल पर एक विदेशी पर्यटक को दिखाया जा रहा था जो हर साल बड़ौदा में गरबा खेलने सपरिवार आया करता है। और चैनल में उसके परिवार का कहना है कि आपके पास अगर यह अवसर है, तो शाम से रात तक इसमें नाचो और झूम जाओ यह दैवीय शक्ति है जिसे हमने सदैव अपनी गरबा या डाडिया थिरकन के दौरान अपने समीप पाया है। और आप भी ऐसा महसूस करते हैं तो यकीन मानिये आप बहुत ही भाग्यशाली हैं।’
अब तो यह सुर लय ताल वैश्विक पहचान बना चुकी है। इसलिए जहां तक हो इसमें शमिल होना चाहिए और इसको नजरंदाज न कीजिए। क्योंकि शोध बताते हैं कि गरबा डाडिया व सामूहिक नृत्य आदि के बहाने सबके साथ जरा सा नाचना होता है जो सब दृष्टि से लाभदायी होता है। किसी के साथ गीत संगीत में थिरकने से मन सदैव प्रसन्न रहता है और तनाव से निपटने में सक्षम बन जाता है। इसीलिए पुराने समय में हर पखवाड़े एक सामूहिक समागम होता ही था जिसमें लोक गीत गाये जाते और लोग अपनी सहज भावना से हौले-हौले थिरकते। इस तरह उनकी सारे दिन की थकान और तनाव सब गायब हो जाता था। आजकल गरबा नृत्य भी ऐसी ही लाभदायक थैरेपी सिद्ध हो रहा है। नृत्य करते समय हर समय जोड़ीदार के साथ कदम का ध्यान रखना, या बड़े समूह में नाचते हुए अन्य लोगों से तालमेल बिठाना और सामूहिक आनंद को अनुभव कर उन्हें पूरा करने के लिए तत्पर रहना अपने व्यक्तित्व के सामाजिक बनाने की दिशा में अग्रसर करना ही है।
चिकित्सा विज्ञान का दावा है कि कुछ समय लोगों के साथ नाचने की क्रिया दर्द को बेहतर तरीके से सहन करने में मदद करती है। दिमाग में एंडोर्फिन नाम का कैमिकल होता है जो कि एक कुदरती दर्द निवारक है। गरबा आदि से शरीर में एंडोर्फिन को बढ़ावा मिलता है, इसलिए शारीरिक दर्द का सामना करने में मदद मिलती है। यह सिर्फ अकेलापन ही दूर नहीं करता है, बल्कि यह स्मरण शक्ति को भी तेज करता है। रक्तचाप की समस्या नहीं रहती। नाचते समय सबके साथ समान भाव रहता है यह जीवन के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण रखने में मदद देता है। अत्यंत मानसिक संतुष्टि और शांति मिलती है।
गरबा डांडिया खेलने वाले अपनाें के साथ खूब खुश रहते हैं। हंसते हैं, ठहाके लगाते हैं। सजते और संवरते हैं। इससे कई स्वास्थ्य संबंधी फायदे होते हैं। इससे असंतोष और शिकायत का भाव कम होता है। और आने वाले बाकी दिनों में चिंतामुक्त, रोग मुक्त एवं दीर्घायु जीवन का आनंद पाते हैं। इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और शरीर सभी रोगों एवं परिस्थितियों से लड़ने में समर्थ होता है। इससे सिर्फ अकेलापन ही दूर नहीं होता है, बल्कि यह स्मरण शक्ति को भी तेज करता है। रक्तचाप की समस्या नहीं रहती।
देखा जाये तो इस जीवन का उत्कर्ष भी तो यही है न कि अपने समाज के साथ सहज भाव से आडंबरहीन होकर हंस लिया जाये, ताली बजा ली जाये और आत्मिक सुख का रस पी लिया जाये। कितनी ही ऐसी खबर सचित्र आती है कि अस्सी बरस के बुजुर्ग भी पूरे नौ दिन गरबा खेलने जाते है और अद्भुत सुकून तथा तृप्त लेकर अपनी ऊर्जा का स्तर बढ़ाते हैं।
अनमोल समय है, इसलिए इस प्रकार के नृत्य के लिए न तो कोई हिचकिचाहट होनी चाहिए, और न ही शर्माना चाहिए, जीवन को गुणवत्तापूर्ण बनाना ही मनुष्य का लक्ष्य है अतः मानसिक सुकून के सभी इच्छुकों और प्रयासियों को सामूहिक नृत्य की उपयोगिता और महत्ता ध्यान में रखनी चाहिए।