सितम्बर, 2023
राष्ट्रभाषा विशेषांक
हिन्दी पर विशेष
लक्ष्मीनारायण भाला ‘लक्खी दा’
भारत भर में बोली जाती
प्यारी भाषा हिन्दी।
मां का वैभव-मान बढ़ाती
यह ललाट की बिंदी।।
रहस्य इसमें एक छिपा है
बड़ा जटिल और भारी।
नाम, कर्म और क्रियापदों में
कौन पुरुष, को नारी।।
वार्तालाप हुआ कहलाता
वार्ता हुई कहाती।
वाद हुआ तो चर्चा होती
बातचीत रंग लाती।।
भैÕया आकर समझाता है
मैं करता वह करती।
कौन है आती कौन है आता
आकर बहन बताती।।
डाकू आता, चोर भी आता
पुलिस पकड़ने आती।
युद्ध छिड़ा और छिड़ी लड़ाई
सेना लड़ने जाती।।
भाला, तीर चला था पहले
और तलवार चली थी
अब पिस्तौल, बंदूकें चलती
नव-नव रूप बदलती।।
काल बदलता, मौसम आता
ट्टतु कहलाती रानी।
सर्दी, गरमी, वर्षा आती
तभी बरसता पानी।।
खांसी आयी, खायी दवाई
और सूई लगवायी।
इन्जेक्शन फिर क्यों लगवाना
ओढ़ी एक रजाई।।
कम्बल ओढ़ा, चादर ओढ़ी
लेन सभी ने ओढ़ा।
दरी बिछाई, आव भगत की
स्वागत किया अनोढ़ा।।
टेबुल लाया, कुर्सी लायी
लायी एक चटाई।
थाली लायी, गिलास लाया
एक कटोरी लायी।।
सब्जी, रोटी सबने खायी
रसगुल्ला था खाया।
खाया भात, दाल थी खायी
दाल-भात मिल खाया।।
शरबत, रस और दूध पिलाया
कॉफी, चाय पिलायी।।
दही मथा, मक्खन-घी पाया
लस्सी, छाछ पिलायी।
लिखा निबंध, गीत और नाटक
लिखा श्लोक, आलेख।
लिखी कहानी, कविता, चिट्ठी
लिखा पत्र और लेख।।
रात हुई तो निंदिया आई
देखा सपना एक
हुआ सवेरा बिस्तर छोड़ा
चादर रखी समेट।।
साड़ी पहनी, ब्लाऊज पहना
पेटीकोट भी पहना
चोली, चूड़ी, चप्पल पहनी
जूता गहना पहना।।
बनियान पहनी, कुर्ता पहना
फिर पहनी पतलून
टोपी पहनी, कोट भी पहना
आओ चले सैलून।।
केश कटाया, मूंछ कटायी
और दाढ़ी बनवायी।
नाखून काटा, तेल लगाया
और क्रीम लगवायी।।
बाल्टी लायी, साबुन लाया
मला बदन पर तेल।
स्नान किया और माला फेरी
फिर खेला था खेल।।
क्रिकेट खेला, हॉकी खेली
और कबड्डी खेली।
फुटबॉल, खो-खो, कैरम खेला
फिर थी दौड़ लगा ली।
साईकिल चलती, स्कूटर चलता
बस है आती-जाती।
ट्रक आता-जाता है देखो
मोटर आती-जाती।।
रथ चलता है, ट्रेन है चलती
विमान उड़ता नभ में।
प्रवास करना, यात्र करनी
भाव जगा यह मन में।।
जगी भावना तो मन डोला
जीभ हिली, मुंह बोला
किया प्रणाम, बढ़ाया था पग
और उठाया झोला।
नदिया बहती, सरिता बहती
नहर बही अनुरूप।
झरना गिरता, नाला बहता
धरे पुरुष का रूप।।
मिट्टी, धरती, जमीन, भूमि
सब नारी के रूप।
पत्थर, पेड़, पहाड़, समुंदर
कहते पुरुष स्वरूप।
बचपन बीता, आयी जवानी
शेष बुढ़ापा आता।
ज्ञान-यज्ञ से कभी न टूटे
जीवन भर का नाता।।
पुस्तक खोली, पाठ पढ़ाया,
उत्तर पाया एक।
लिंग भेद को वह जानेगा,
जिसका प्रयास नेक।।
सूरज का प्रकाश हो चाहे,
चंदा की चांदनी।
रहस्य अंधियारे का जानो
कहते ज्ञानी-गुणी।।