कहानी
— कायर —
-पुष्पेश कुमार पुष्प
पुरुष ने कायरता दिखाई परन्तु पत्नी घोर परिस्थितियों के सामने दृढ़ होकर खड़ी हो गई। उसने कायरता नहीं दिखाई।
मनोज के घर के पास लोगों की भीड़ लगी थी। लोगों की समझ में यह बात नहीं आ रही थी कि मनोज जैसा सहनशील और सरल स्वभाव के व्यक्ति ने आत्महत्या कैसे कर ली। लोगों के साथ घुल मिलकर रहने वाला और न कोई पारिवारिक उलझन। मिलनसार प्रवत्ति का मनोज कल ही तो लोगों से बातचीत कर रहा था। उसकी बातों से ऐसा प्रतीत नहीं हो रहा था कि वह आत्महत्या कर लेगा। वह टेªन के आगे कूदकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली थी। लोग उसकी लाश आने की प्रतीक्षा बड़ी व्यग्रता से कर रहे थे।
उसने कल शाम को ही अपना काम तमाम कर लिया था। कल शाम से ही वह गायब था। पत्नी और बच्चों ने सोचा कि वह किसी आवश्यक काम से कहीं गया होगा। सुबह तक जब घर नहीं आया, तो उसकी पत्नी मोहल्ले के लोगों से उसके बारे में पूछ-ताछ करने लगी। लेकिन मोहल्ले के लोग कुछ जानकारी देने में असमर्थ थे। शाम को पुलिस का एक जवान आया और उसने ही उसकी आत्महत्या करने की जानकारी दी थी। उसकी आत्महत्या की खबर पूरे मोहल्ले में जंगल की आग की तरह फैल गयी। यह खबर सुनते ही पत्नी और बच्चों के आंसू थमने के नाम नहीं ले रहे थे। घर में कोहराम मच गया था। रात होने को आयी, लेकिन अभी तक उसकी लाश नहीं आयी थी। रात जैसे-जैसे गहराती जा रही थी, वैसे-वैसें लोगों की बेचैनी बढ़ती ही जा रही थी।
तभी एक व्यक्ति ने आकर सूचना दी कि पुलिस उसकी लाश लेकर आ रही है। उसके शरीर के तो टुकड़े-टुकड़े हो गये हैं।
उसकी लाश उसके घर के बरामदे में रख दी गयी और लोग उसके अंतिम दर्शन कर वापस अपने घर लौट रहे थे। रात्रि के घनघोर अंधकार के बावजूद चांदनी के दूधिया प्रकाश में सारे वातावरण में मानो एक अजीब सी खामोशी छायी हुई थी। पेड़-पौधे भी चांदनी में नहाये शांत खड़े थे और बाहर खड़े लोग चांदनी के प्रकाश में दूर से सफेद प्रेत प्रतीत हो रहे थे। वहां के वातावरण में एक अजीब सा सन्नाटा छाया हुआ था। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो समय ठहर गया हो। हवा भी शांत थी। लोगों में एक अजीब सी बेचैनी थी। लोग आपस में तरह-तरह की बातें कर रहे थे। मनोज इस मोहल्ले में पिछले कई वर्षो से रह रहा था। पहले तो वह किराये के मकान में रहता था। फिर धीरे-धीरे पैसे बचाकर एक मकान खरीद लिया। हर प्रकार से सुखी मनोज ने आखिर आत्महत्या क्यों कर ली। यह बात लोगों की समझ से परे थी। आखिर उसकी आत्महत्या करने के पीछे क्या कारण थे? आखिर उसे किस चीज की तकलीफ थी, जो उसने आत्महत्या कर ली। इस कायरता पूर्ण कदम उठाने के पीछे कोई न कोई कारण अवश्य होगा? न जाने कितने प्रश्न लोगों के मन मस्तिष्क में कौंध रहे थे।
अगले दिन ही उसकी आत्महत्या करने के पीछे का राज खुल गया। उसने महाजन से काफी रुपये उधार ले रखे थे। वह इस कर्ज को चुकाने में असमर्थ था और उसने मौत को गले से लगा लिया। महाजन रुपये के बदले मकान खाली करवाने आया था। उसकी पत्नी पर तो पहले से ही दुख का पहाड़ टूट पड़ा था। अब मकान खाली करने और नये मकान ढूंढने की समस्या मुंह बाये खड़ी थी।
आखिर प्राइवेट कंपनी में नौकरी करने वाला मनोज कमाई के रुपये को कहां खर्च कर देता था कि उसे कर्ज लेने की नौबत आ गयी? यह बात लोगों की समझ से परे थी। धीरे-धीरे इस रहस्य पर से भी परदा उठ गया। वह कंपनी में करने वाली एक महिला के प्रेम जाल में फंस गया था और उसी पर अपनी सारी कमाई उड़ा देता था। लोगों और परिवारों की नजरों में तो वह चरित्रवान था। यह बात लोगों की कल्पना से परे थी कि मनोज सीधा सादा जरूर दिखता था, पर वह वैसा था नहीं। वह तो छुपा रूस्तम निकला।
पत्नी की काफी आरजू मिन्नत के बाद महाजन उसके परिवार को दूसरा मकान नहीं मिलने तक रहने की इजाजत दे दी।
मुहल्ले की औरतें उसकी पत्नी को सांत्वना देने गयी, तो उसकी पत्नी रो-रोकर कह रही थी, उसके पति ने कभी इस बात का एहसास नहीं होने दिया कि वह किसी दूसरी औरत से प्रेम करता है। उस छलिया औरत ने मेरी जिंदगी बर्बाद कर दी। आखिर मुझमें क्या कमी थी, जो उस औरत के मोहजाल में फंसकर अपनी बसी-बसायी दुनिया उजाड़ दी। उस नागिन ने मेरे परिवार को बेघर कर दिया। जरूर उस कुलटा ने उसके सारे रुपये झटकने के बाद उन्हें ठुकरा दिया होगा। लेकिन उन्हें ऐसा कायरतापूर्ण कदम तो नहीं उठाना चाहिए था। सुबह का भूला यदि शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते। लेकिन उस चांडालिन ने उसके साथ ऐसा जरूर कुछ किया होगा, जो उन्हें अपने हंसते खेलते परिवार को छोड़ना पड़ा। इस कायरता पूर्ण कदम उठाने के पूर्व एक बार भी उन्होंने अपने परिवार के बारे में नहीं सोचा कि उनके जाने के बाद परिवार का क्या हाल होगा? मुझे इस मकान का खोने का कोई गम नहीं, जितना उनको खोने का गम है। अब इन बच्चों की परवरिश मैं कैसे करूंगी। मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा।’
इस पर मोहल्ले की एक औरत ने कहा-‘मनोज भाई साहब, परसों शाम तक लोगों से मिलते-जुलते रहे। उनको देखकर ऐसा प्रतीत नहीं होता था कि वे किसी औरत के मोहजाल में फंसे हैं। उनके जैसा संस्कारी, कर्मठ और चरित्रवान व्यक्ति भी ऐसा कर्म कर सकता है। मुझे तो इन बातों पर विश्वास ही नहीं हो रहा। उस कुलटा को यह भी न लगा कि मनोज भाई साहब शादीशुदा हैं और उनके बाल बच्चे हैं। उनके सारे रुपये ऐंठकर उन्हें आत्महत्या करने पर विवश कर दिया होगा। आज की औरतें पैसों की खातिर क्या कुछ नहीं कर सकती? वह जरूर पैसें की पुजारिन होगी, तभी तो एक शादीशुदा व्यक्ति की जिंदगी बरबाद कर दी। जब सब कुछ गंवा दिया तो आत्महत्या करने की क्या जरूरत थी। वे अपनी नयी जिंदगी की शुरूआत भी तो कर सकते थे। उन्होंने तो सचमुच कायरतापूर्ण कदम उठा लिया। उन्होंने एक बार भी अपने परिवार के बारे में नहीं सोचा कि उनके बाद बाकी का क्या होगा?’
मोहल्ले की औरतों की बातों को सुनकर मनोज की पत्नी साधना मुंह ढांप कर रोने लगी और बोली-‘तभी तो कई-कई दिन घर नहीं आते थे। कुछ पूछने पर बोलते भी नहीं थे। आखिर उनके मन में क्या चल रहा था मैं समझ नहीं पायी? जरा सा एहसास हो जाता तो उसे कुलटा से उन्हें दूर करने का कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेती।’
मोहल्ले की औरतों ने उसे सांत्वना देते हुए कहा-‘बहन, जो होना था, सो हो गया। अब आगे की सोचो। बच्चों के भविष्य के बारे में सोचो। आगे की जिंदगी कैसे कटेगी, इसके बारे में सोचो। अब रोने से क्या फायदा? हिम्मत से काम लो। अगर तुम टूट गयी तो तुम्हारे बच्चों को कौन संभालेगा। इन बेकार की बातों को सोचने से अच्छा है कि इन बच्चों के बारे में सोचो।’
बिस्तर पर पड़ी साधना की आंखों से नींद तो कोसों दूर गायब हो चुकी थी।
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