Pradhanmantri fasal beema yojna
Homeकहानियांघृणा की दीवार

घृणा की दीवार

कहानी श्याम पोकरा

अप्रैल 2023
शिक्षा विशेषांक

पिता की मृत्यु के बाद उसने ही अपने छोटे भाई को पढ़ाया लिखाया और उसका विवाह करवाया।

छोटे भाई सरकारी नौकरी में लग गया। छोटे भाई का स्वार्थ जागा। वह अलग हो गया परन्तु बडे़ भाई ने एक दिन घृणा की दीवार तोड़ दी।

वह जोर-जोर से चीख रहा था-‘मैंने ईंटों की दीवार नहीं तोड़ी है, मैंने तो घृणा की दीवार तोड़ी है थाणेंदार साहब। जो दो भाइयों के बीच में खड़ी हो गई थी। मैंने ईंटों की दीवार नहीं तोड़ी है, मैंने तो घृणा की दीवार तोड़ी है।’ वह जोर-जोर से चीख रहा था, परन्तु उसकी बात को न कोई सुन रहा था और न ही कोई उसकी बात को समझ रहा था। थाणेदार का आदेश मिलते ही तीन चार सिपाहियों ने मिलकर उसे पकड़ लिया था और जबरन पुलिस की जीप में ला बैठाया था। चौराहे पर खड़ी पुलिस की जीप के चारों तरफ गांव वालों की भीड़ जमा हो गई थी। लेकिन कोई भी उसके पक्ष में बोलने की हिम्मत नहीं कर सका था। जीप स्टार्ट हुई थी और गांव से बाहर निकल कर रामगंज की ओर दौड़ पड़ी थी।
रामगंज के थाने में आ कर पुलिस वालों ने उसे लॉकअप रूम में बंद कर दिया था। लोहे के चैनल वोट पर मोटा ताला लगा कर दोनों सिपाही चले गये। थोड़ी देर छटपटाने के बाद वह शांत हो गया। दिन भर उसने खेत पर काम किया था। शरीर थक कर चूर हो गया था। दीवार के सहारे वह पत्थर के फर्श पर बैठ गया। रात गहराने लगी तो उसके अंदर कई तरह के विचार उमड़ने घुमड़ने लगे। अतीत उसकी आंखों में तैरने लगा। बूढ़े और बीमार पिता का दुर्बल स्वर एक बार फिर उसके कानों में गूंज गया। सुरेश तू बड़ा है बेटा, अपने छोटे भाई बहनों का ख्याल रखना।’
लगभग दो दशक गुजर गये हैं। उस समय पिताजी गंभीर रूप से बीमार थे और रामगंज के सरकारी अस्पताल में भर्ती थे। उनकी सेवा में वह रात दिन बेड के नजदीक बैठा रहता था। पिताजी को मोतीजरा हो गया था और दिन प्रतिदिन उनकी हालत बिगड़ती जा रही थी। एक दिन उसके सिर पर हाथ रखकर उन्होंने चिंतित होकर ये शब्द बोले थे। फिर कुछ दिनों बाद ही उनका स्वर्गवास हो गया था।
उस समय उसकी उम्र भी अधिक नहीं थी। वह मिड्लि स्कूल में पढ़ रहा था। दो भाइयों और दो बहनों में वह सबसे बड़ा था। उसने अपनी जिम्मेदारी को समझा था। और वह पढ़ाई छोड़कर मां के साथ खेती के काम में लग गया था। बैलों के साथ बैल बनकर वह खेतों में हाड़तोड़ मेहनत करने लगा था। अपनी मेहनत के बल पर ही उसने स्वयं का विवाह किया था। दोनों छोटी बहनों के विवाह रचाये थे। राजेश को कालेज तक पढ़ाया लिखाया था और उसका विवाह भी धूमधाम से किया था। कुछ समय बाद मां का स्वर्गवास हो गया था। मां नहीं रही तो स्वयं को वह असुरक्षित और निःसहाय महसूस करने लगा था। उस दिन उसे बड़ी खुशी हुई थी जिस दिन राजेश को सरकारी नौकरी मिल गई थी।
छोटा भाई भी कमाने लगा तो उसके घर में भी खुशहाली आ गई थी। कर्ज चुकाने की उसकी चिताएं भी दूर हो गई थी। राजेश उसका बड़ा सम्मान करता था। वह उसे भैया-भैया कहकर पुकारता था। हर महीने उसकी आर्थिक मदद करने लगा था और घर के हर कार्य में उसका हाथ बंटाने लगा था। उसकी पत्नी भी बड़ी भाभी का बड़ा आदर करती थी। घर के कार्यो में उसका बड़ा सहयोग करती थी। वे दोनों पति पत्नी उसके छोटे-छोटे बच्चों को भी बड़े स्नेह से रखते थे। प्रेम और खुशी के माहौल में उन दोनों भाइयों का जीवन बड़ी सरलता से गुजरने लगा था। लेकिन यह अधिक समय तक नहीं चला था। राजेश की सरकारी नौकरी थी। वह उससे अधिक कमाता था। और सारे परिवार पर खर्च करता था। यह उसकी पत्नी को अखरने लगा था। छोटी-छोटी बातों पर वह बड़ी भाभी से झगड़ा करने लगी थी, राजेश को भड़काने लगी थी। इसका परिणाम यह हुआ कि एक दिन राजेश उससे लड़ झगड़कर अलग हो गया था। घर और खेत का उसने बंटवारा कर दिया था, परन्तु आंगन का बंटवारा करने से साफ इंकार कर दिया था।
इसके बाद लम्बा समय गुजर गया था। राजेश के घर में दो बच्चों का जन्म हो गया था। उसके दोनों बेटे बड़े होकर कालेज में पढ़ने शहर चले गये थे। राजेश की आमदनी उससे अधिक थी। उसने कच्चा घर तुड़वाकर पक्का मकान बनवा लिया था। नई मोटरसाइकिल खरीद ली थी। घर में टीवी, फ्रिज खरीद लिये थे। खेती में रात दिन कठोर मेहनत करने के बाद भी वह अधिक कुछ नहीं कर सका था। उसका घर कच्चा ही था और अभी भी वह पिताजी की साइकिल को चला रहा था। परन्तु फिर भी उसके हृदय में इस बात की प्रसन्नता भरी हुई थी कि उसके दोनों बेटे कालेज में पढ़ रहे थे। राजेश उससे दूर-दूर रहता था। वह उससे बात भी नहीं करता था। वह आंगन में खड़ी उसकी मोटरसाइकिल और उसके छोटे-छोटे बच्चों को खेलते हुए देखकर ही प्रसन्न हो जाता था।
एक दिन राजेश ने उससे आंगन में दीवार खड़ी करने की बात कही तो वह भड़क उठा था। ‘नहीं—–आंगन का बंटवारा कभी नहीं होगा।’ उसका प्रतिरोध सुनकर उस समय तो राजेश चुप हो गया था। लेकिन बात कुछ दिनों बाद उसके घर में फिर सिर उठाने लगी थी। जिसकी आहट कभी-कभी उसे भी सुनाई पड़ जाती थी। इस घर में हर वस्तु का बंटवारा हो चुका है। यहां तक कि समय ने उनके दिलों को भी बांट दिया था। घृणा के जहर ने उन दोनों भाइयों के बीच के प्रेम को भी नष्ट कर दिया था। एकमात्र यह छोटा सा आंगन ही तो बचा है, जहां वे एक दूसरे को देख सकते हैं, महसूस कर सकते हैं। इस आंगन में ही उन सभी भाई बहनों के बचपन की स्मृतियां बसी हैं, माता-पिता की यादें बसी हैं। इस आंगन को वह कैसे बांट सकता है।
आज सुबह वे दोनों पति-पत्नी घर के ताला लगाकर खेत पर काम करने निकल गये थे। दिन भर उन्होंने खेत मेें निंराई खुदाई की थी। शाम को वे थके हारे घर लौटे थे। जैसे ही उसने घर में कदम रखा था, आंगन के बीच में खड़ी ईंटों की दीवार को देखकर वह चौंक पड़ा था। दूसरे ही क्षण मामला उसकी समझ में आ गया था। आज राजेश ने मौका देखा था और उसकी अनुपस्थिति का फायदा उठाकर तुरत फुरत में आंगन के बीच ईंटों की दीवार खड़ी करवा दी थी। दीवार को देखते ही उसका पारा चढ़ गया था। उसने क्रोध में चीखते हुए छोटे भाई राजेश को पुकारा था। दो तीन बार आवाज लगाने के बाद भी जब वह नहीं बोला तो उसका क्रोध सीमा पार कर गया था। और उसने अपनी पूरी ताकत लगाकर दायें पैर से दीवार पर प्रहार कर दिया था। दीवार का सीमेंट अभी गीला था, जो एक ही प्रहार में टूटकर बिखर गई थी। यह देखकर आंगन में उस पार खड़े हुए राजेश भी क्रोधित हो उठा था। वह उससे तो कुछ बोलने की हिम्मत नहीं कर सका था, परन्तु क्रोध में तमतमाते हुए मोटरसाइकिल स्टार्ट करके रामगंज थाने की ओर दौड़ पड़ा था। राजेश रिर्पोट लिखवा कर आ गया था। और कुछ समय बाद ही पुलिस उसके घर आ धमकी थी।
‘ले रोटी खा लें।’
अचानक सिपाही का तीखा स्वर सुनकर उसके विचारों का प्रवाह टूट गया। रोटी की प्लेट और पानी की बोतल को गेट के अंदर सरकाकर सिपाही चला गया। बड़ी कठिनता से उसने दाल से दो निवाले हलक में उतारे और बोतल से पानी पी लिया। शरीर थक कर चूर हो गया था। वह पत्थर के फर्श पर लेट गया। बहुत देर तक उसे नींद नहीं आई। रात की नीरवता में मस्तिष्क में भावनाएं फिर उमड़ने लगी।
राजेश उससे दस साल छोटा है। बचपन में वह उसे गोदी में उठाकर घुमाता था, स्नेह से रखता था। पिताजी के गुजरने के बाद कठोर मेहनत करके उसने उसे पढ़ाया लिखाया था। धूमधाम से उसका विवाह रचाया था। नौकरी मिलने के बाद धीरे-धीरे उसके स्वभाव में बदलाव आ गया था। वह उससे कटा-कटा रहने लगा था, कम बोलने लगा था। उसके छोटे-छोटे बच्चों के प्रति भी उन दोनों पति-पत्नी के अंदर कड़ुवाहट भरने लगी थी। और एक दिन लड़ झगड़ कर वह उससे अलग हो गया था।
लम्बा समय गुजर गया है। राजेश के बच्चे बड़े हो गये हैं। वह साधन संपन्न हो गया है। परन्तु बड़े भाई के प्रति राजेश के मन की कटुता कम नहीं पड़ी है। इसी का परिणाम है कि आज मौका मिलते ही उसने आंगन के बीच में दीवार खड़ी करवा दी। वह दीवार उसे ईंटों की नहीं घृणा की दीवार नजर आई थी, और अपने दायें पैर के एक ही जोरदार प्रहार से उसने उसे धराशायी कर दिया था।
आधी रात बीत गई थी। चारों तरफ सन्नाटा छा गया था। थकावट के मारे उसकी आंखों में नींद छाने लगी थी। आंखें मूंद कर वह सोने का प्रयास करने लगा। थोड़ी ही देर में उसे नींद ने आ घेरा था।
सुबह उसे सिपाही ने आकर जगाया। ‘ये——चल उठ जा, तेरी जमानत हो गई है।’ वह बोलते हुए सिपाही ने गेट का ताला खोल दिया। उठकर वह बाहर आया और सिपाही के साथ चल पड़ा। वह दिमाग पर जोर देकर सोचने लगा कि गांव का कौन व्यक्ति उसकी जमानत दे सकता है। चलते-चलते वे थानेदार के कमरे में पहुंच गये। वहां गांव के लोगों की भीड़ देखकर वह चौंक पड़ा। उनके साथ खड़े छोटे भाई राजेश को देखकर वह विस्मित रह गया। उसे देखते ही राजेश दौड़कर उसके पैरों में आ लिपटा। ‘आप मुझे क्षमा कर दें भैया, आप मुझे क्षमा कर दें। आप सच बोल रहे थे भैया कि आपने ईंटों की दीवार नहीं तोड़ी है आपने तो घृणा की दीवार तोड़ी है। आपने मेरी आंखें खोल दी हैं। लोगों के बहकावे में आकर मैं अपने देवता समान भाई को दुश्मन समझने लगा था। आप मुझे क्षमा कर दें भैया, आप मुझे क्षमा कर दें।’
रोते गिड़गिड़ाते हुए छोटे भाई को देखकर वह भावविह्ल हो उठा। उसकी आंखों में पानी छलछला आया। और पैरों में से राजेश को उठाकर उसने अपने गले लगा लिया।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments