बाल कहानी डॉ. अशोक रस्तोगी
मार्च, 2023
नवसंवत विशेषांक
उत्सुकता नाश्यति क्लांति
गांव से पच्चीस मील दूर कलकत्ता के किसी अच्छे विद्यालय में प्रवेश कराने के लिए ठाकुरदास जी अपने आठ वर्षीय पुत्र की अंगुली थामे पदाति-पदाति चले जा रहे थे। क्योंकि किसी गाड़ी आदि में बैठने के लिए उनकी जेब में पैसे नहीं थे। इतनी लंबी दूरी उस कोमल किसलय बालक के लिए अत्यधिक कष्टकारक थी। वह पीड़ा अथवा क्लांति का एहसास अधिक न करे, इसलिए ठाकुरदास जी उसके मन बहलाव के लिए शिक्षा की महत्ता, उपयोगिता तथा उन्नति के उपायों की चर्चा करते चल रहे थे। साथ ही मार्ग में पड़ने वाले दूरी संकेतक पाषाण स्तंभों को दिखा-दिखाकर अंग्रेजी संख्याओं का भी ज्ञान कराते जा रहे थे। जोड़ घटाव करते वे यह भी बतलाते चल रहे थे कि अभी तक हम इतने मील चल चुके हैं और कलकत्ता अभी इतनी दूर और शेष रह गया है।
मानव मस्तिष्क का सहज स्वभाव होता है कि उसे जिस वातावरण और जिस दिशा में सक्रिय रखा जाता है उसी ओर अग्रसरित होने लगता है। और उसी के अनुसार गुण दोषों को ग्रहण करता चलता है। वही उस बालक के साथ भी हुआ। पिता की बातों को वह बड़े ध्यान से सुनता रहा और हृदयंगम करता रहा। आगे पड़ने वाले पाषाण स्तंभों पर लिखी संख्या पढ़-पढ़कर मन ही मन जोड़ घटाव करता रहा। उसके हृदय में जगी उत्सुकता ने तथा शैक्षिक क्षेत्र में नया कुछ प्राप्त करने की ललक ने उसे क्लांति का एहसास नहीं होने दिया।
कलकत्ता के अग्रणी फोर्ट विलियम संस्कृत विद्यालय में पिता पुत्र पहुंचे तो प्रधानाचार्य को लगा कि ग्राम्य परिवेश में पला बढ़ा बालक इस सुविख्यात विद्यालय के वातावरण को आत्मसात नहीं कर पाएगा। अतएव उन्होंने बालक को टालने के उदद्ेश्य से अंग्रेजी भाषा व अंकों से संबंधित विभिन्न प्रकार के प्रश्न पूछने प्रारंभ कर दिए। उन दिनों कक्षा पांच तक अंग्रेजी का ज्ञान किसी भी विद्यालय में नहीं दिया जाता था। इसलिए प्रधानाचार्य सोच रहे थे कि यह बालक भी उनके प्रश्नों का उत्तर नहीं दे पाएगा और सरलता से उसके प्रवेश को नकारा जा सकेगा। लेकिन उस बालक ने तो उनके हर प्रश्न का उत्तर ऐसी तत्परता से दिया कि उसकी विलक्षण मेधा पर वे बिना चकित हुए न रह सके।
प्रधानाचार्य ने उस बालक से असमंजस भरे स्वर में पूछा-‘बेटा! गांव की पाठशाला में तो यह सब नहीं पढ़ाया जाता। फिर अंग्रेजी का यह ज्ञान तुमने कहां से सीखा?
बालक ने निःसंकोच उत्तर दिया-‘श्रीमान जी! यह सारा ज्ञान मुझे आज ही मेरे पिताजी ने मार्ग में दिया है।’
उसकी विलक्षण मेधा से प्रभावित प्रधानाचार्य ने तत्काल उसका प्रवेश उस विद्यालय में कर लिया।
क्या आप बता सकते हैं कि उस मेधावी विलक्षण प्रतिभा का क्या नाम था, जो बाद में सुप्रसिद्ध महापुरुष के नाम से विख्यात हुआ?