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आयु से प्रौढ़ होने के साथ ऊर्जा बढ़ती है

लेख सनत

अधिकांश लोगों की मान्यता होती है हम बूढ़े हो गये हैं
अब कुछ नहीं कर सकते। यह बिल्कुल निराधार है।
मनुष्य सब कुछ कर पाने में हमेशा समर्थ होता है।
बशर्ते कि वृद्धावस्था को एक वरदान समझें।


अप्रैल 2023
शिक्षा विशेषांक

यौवन का मतलब है एक ऐसी मनःस्थिति, जिसमें हर पल उत्साह उमड़ता हो और उमंग की तरंग फूटती हो। इसे आप यूं कह लें कि यौवन का ताल्लुक तन की बजाय मन से अधिक होता है। हर दिन की खुश मनःस्थिति ही युवावस्था का परिचय देती है, जो हर समय स्वस्थ रहते हुए एक जिन्दादिली का जीवन जीते हैं। जिनके मन में कुछ खास करने की ललक जगती है। कुछ खास बनने की प्रेरणा लहर उठती है, ऐसे जागरूक लोगों को बूढ़ा नहीं कहा जा सकता। वास्तव में बूढ़ों की श्रेणी में होते हुए भी अपनी मनःस्थिति को जो सक्रिय रखे हुए हैं वे किसी युवक से कम नहीं है।
निराधार हैं वृद्धावस्था की ये मान्यताएं
अधिकांश लोगों की मान्यता होती है हम बूढ़े हो गये हैं अब कुछ नहीं कर सकते। यह बिल्कुल निराधार है कि वृद्धावस्था में उनके मन की रचनात्मकता ठप्प पड़ जाती है और किसी प्रकार की क्रियात्मकता उमंग बनकर नहीं उभरती है। जबकि मनुष्य सब कुछ कर पाने में हमेशा समर्थ होता है। बशर्ते कि वृद्धावस्था को एक वरदान समझे। परिपक्व अनुभव से लबरेज इस आयु में तो और भी महत्वपूर्ण कार्य कर सकना संभव है। बस बैठे ठाले न रहकर सक्रियता बनाये रखें।
बनायें अधिक दिन जीने की सोच
कई लोग सोचते हैं, ‘यह मनुष्य जन्म मिला है तो इसे हम जल्दी से जल्दी खत्म करें। हम जल्दी से जल्दी मर जायें। पिण्ड छूटे हमारा मानव देह से।’ हम जब चाहेंगे तभी ईश्वर ले जा सकता है। ईश्वर चाहेगा तो हमारी कोशिश भी काम नहीं आयेगी। ये दोनों बातें हो सकती हैं। ईश्वर का काम ईश्वर का, अपना काम अपना। जल्दी मरने की इतनी उतावली क्यों करना? बल्कि अधिक दिन जीने की सोच बनायें। यह मनुष्य जन्म लेना सचमुच बड़ा अनमोल है। निश्चिंत होकर जीते चलें।
मनोवेगों से चलता है शरीर
शरीर विज्ञानियों की मानें तो मनुष्य शरीर की सारी इच्छाएं, आकांक्षाएं, भावनाएं और विचार मस्तिष्क से ही उपजते हैं। शरीर का निर्देशक मस्तिष्क ही है। उसी के निर्देशन में हमारा शरीर काम करता है। सी-डी-टी सिचुएशन में ‘सी’ अर्थात् केयर (चिन्ता), ‘डी’ अर्थात डिफिकल्ट (कठिनाई) और टी अर्थात ट्रबल (कष्ट)। ये तीनाें मानसिक निराशा की स्थिति में दिखते हैं। भावनात्मक सन्तुलन को जीवन की अनमोल निधि समझना अच्छा होता है। यह एक कला है। जिसके जरिये जीवन हरा भरा, सुखी और शान्त बनता है।
जारी रखें सक्रियता का दैनिक अभ्यास
आपकी आत्मा शुद्ध और निष्पाप है, आपका तन स्वस्थ है तो फिर आपका मन विकृत चिंतन की ओर जा ही नहीं सकता। आप नियमित प्राकृतिक जीवन शैली अपनायें और सदैव सक्रिय और सकारात्मक विचार रखें तो आरोग्यता से भरपूर रहेंगे। लेकिन मन और तन की कार्यक्षमता को भुला देंगे, स्वयं को अशक्त अनुभव करेंगे तब तो बिना किये जीवन नरक बन ही जायेगा। अतः आपका जागरूक और सचेत रहना अति आवश्यक है।
मन की एकाग्रता हेतु लें ध्यान की मदद
आप स्वयं को एकाग्रचित्त रखने के लिए निःसंदेह ध्यान की मदद ले सकते हैं। प्रातः से लेकर रात्रि विश्राम करने के मध्य तक कुछ समय ध्यान के लिए निकाल सकते हैं। ध्यान के अनेक फायदे होते हैं। जिनमें प्रमुख तो यही कि इससे मन को बहुत शांति मिलती है। मन की संकल्प शक्ति बढ़ती है। ध्यान का विषय अपने स्वयं केे चिन्तन पर हो सकता है। पिछले कर्मो की समीक्षा के रूप में हो सकता है। चाहें तो विधेयात्मक भविष्य की रूपरेखा तैयार करने में भी ध्यान कर सकते हैं। आपके विधेयात्मक विचारों से जीवन शक्ति पुंज हो उठेगा।
सुधार लें अपनी मनःस्थितियां
मन के उतार चढ़ावों का तन पर तत्कालिक प्रभाव पड़ता है। क्रोध से चेहरे का रंग लाल हो जाता है। शोक से चेहरे का रंग पीला हो जाता है। इसके विपरीत हास्य और प्रसन्नता की फुलझड़ियां बिखेर दें तो उसी चेहरे की रंगत गुलाबी हो जायेगी। अन्दरूनी अंगों पर भी उसका अनुकूल प्रभाव पड़ेगा। मन और तन दोनों जवां हो जायेंगे तब मनःस्थितियां भी बदलकर सकारात्मक दिशा की ओर मुड़ जायेंगी।
स्वयं को मानें एक शक्ति
जीवनी शक्ति का क्षय नशा से सर्वाधिक होता है। व्यक्ति को सर्वनाश की ओर धकेल देता है नशा। किसी को आजीवन आरोग्य चाहिए तो उसे अपनी जिह्वा पर पूर्ण संयम रखना होगा, उस तरह के संगत में कभी जाना नहीं है, बल्कि दूर से ही नशा को बाय-बाय बोलना है। स्वयं को अनुशासित करना है, आत्मसंयमी बनना है। और सज्जनता अपनाना है। याद रखें आप एक शक्ति हैं मात्र व्यक्ति नहीं। जीवनशक्ति का भण्डार है आपका तन।
दीर्घायु लेखकों की मिसाल
इतिहास में ऐसे बहुत से व्यक्तियों की मिसालें मौजूद हैं, जिन्होंने बुढ़ापा को मात दे दी। अस्सी वर्ष की आयु में कैरी ने यूनानी भाषा सीखी। अनेक यूनानी ग्रंथों का अंग्रेजी में अनुवाद किया। अस्सी वर्ष की आयु में सोफोक्लीज ने महान ग्रंथ ‘ओउपल’ पूरा किया। नब्बे वर्ष की आयु में थियोफ्रास्टस ने महान साहित्य कृति ‘कैरेक्टर आफ दी मैन’ लिखा। अस्सी वर्ष की आयु में गेटे जब अस्वस्थ हुए तब भी उन्होंने समय को व्यर्थ नहीं गंवाया और फौस्ट नामक ग्रंथ लिखकर बता दिया। तिरासी वर्ष की आयु में माइकल एंजोलो ने ‘सानेटी’ लिखा। टालस्टाय की अधिकांश चर्चित कृतियां अस्सी वर्ष के बाद की लिखी हुई हैं।
महापुरुषों के जवाब भी गजब
महात्मा गांधी पचहत्तर और अस्सी वर्ष के मध्य अधिक व्यस्त रहे। एक सौ एक वर्ष तक जीवित रहने वाले भारत रत्न मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरैया कहते थे कि हर समय व्यस्त रहना और मन को निराशावादी विचारों से बचाये रखना मेरे दीर्घ जीवन का रहस्य है। तिरासी वर्ष तक जीने वाले फ्रांस के महान लेखक हयूगो का कहना था कि मस्तिष्क को मैंने जितना अधिक व्यस्त रखा उतनी ही उसकी रचनात्मक शक्ति बढ़ती गयी। अस्सीवां जन्मदिन पर वैज्ञानिक थामस अल्वा एडिसन अपने काम की रफ्रतार पर बोले थे कि अभी मैं इतना बूढ़ा नहीं हुआ हूं और न ही अभी होना चाहता हूं।
प्रेरित करने वालों से
अधिक दोस्ती
जो विपत्ति के दिनों में आपको ढाँढस बंधाये, मार्गदर्शन करें और हिम्मत देते हुए हर समस्या का निदान कर दे। आप जहां कहीं भी रहें, एक पुकार लगायें तो वे अविलम्ब उपस्थित हो जाये। ऐसे लोग आपके परम शुभचिन्तक होते हैं। आपको अधिक इन्हीं शख्सियतों से दोस्ती करनी चाहिए। साथ में आपको उत्प्रेरक साहित्य की पुस्तकें भी पढ़नी चाहिए। संभव हो तो जहां भी मोटिवेशनल स्पीच का कार्यक्रम रखा गया हो, आप उसे अवश्य अटेंड करने का प्रयास करें। इससे आपके आत्मबोध और आत्मबल में वृद्धि होगी।

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