कविता डा.उमेश प्रताप वत्स
मार्च, 2023
नवसंवत विशेषांक
बारूद के ढेर पर बैठा, आदमी इतराता क्यों हैं,
निन्यानवे के फेर में पड़ा, अहम जताता क्यों है।
क्षण भर की घड़ी भी तेरे हाथ में नहीं,
आ जाये कोई दुख तो हंसी भी साथ में नहीं,
अपनी इच्छा से एक पत्ता भी गिरा सकता नहीं,
तू चाहे तो एक तिनका भी झुका सकता नहीं।
फिर अपने बारे में इतना बताता क्यों हैं,
निन्यानवे के फेर में पड़ा, अहम जताता क्यों है।
एक तिनके का भी सामना तू कर पाता नहीं,
गिर जाये अगर आंख में तो उठ पाता नहीं,
तेरी हैसियत ही क्या है इस चराचर जगत में,
लग जाये एक ठोकर भी संभल पाता नहीं।
फिर स्वयं को व्यर्थ ही दिखाता क्यों है,
निन्यानवे के फेर में पड़ा, अहम जताता क्यों है।
क्या लेकर आया था क्या लेकर जायेगा,
जो भी कमाया यहां से यहीं रह जायेगा,
भोजन की जगह धन राशि क्यों खाता नहीं,
वृद्धावस्था में ठीक से तू चल पाता नहीं।
फिर इच्छाओ के पहाड़ तू बनाता क्यों है,
निन्यानवे के फेर में पड़ा, अहम जताता क्यों है।