कविता डॉ. उमेश प्रताप वत्स
मार्च, 2023
नवसंवत विशेषांक
अपना नहीं यह नया वर्ष, जरा इस पर कुछ विचार करो
ठंड में दुबक रहे वन-उपवन, न इसका तुम प्रचार करो
एक जनवरी नया वर्ष जो, मस्ती से लोग मनाते हैं
अपने आप को सभ्यता का, ध्वजवाहक कहलाते हैं
कभी विचार तो करना था, कैसे क्योंकर ये नया वर्ष?
जंगल ठिठुर रहे सब और, प्राणी में भी कहां है हर्ष?
फिर यूरोप के पदचिन्हों पर? चलकर क्यूं हम इसे मनाएंगे।
अपना पवित्र संवत छोड़कर, क्यूं इसकी बीन बजायेंगे
कुछ भी तो अनुकूल नहीं है, भेड़ चाल में ढोते आयें
अपनी भावी पीढ़ी के लिए, बीज ये कैसे बोते आयें
चलो करें मिलकर संकल्प यह, अपना संवत्सर मनाएंगे
उसी पवित्र प्रतिप्रदा को सब, गीत खुशी के गायेंगे
चहुंओर चिडि़यां चहकेंगी, यौवनता फिर महकायेंगी
नित-नव कोंपल के शृंगार से, प्रकृति सभी को भायेगी
अलसाया सा पुष्प खिलेगा, हँसना हमें सिखायेगा
हरा-भरा जंगल भी हमको, नव संवत का परिचय करायेगा
कृष लतायें खिलकर बोलेंगी, फसलें भी लहरायेंगी,
अंग्रेजी वर्ष और संवत का अंतर, प्रकृति हमें समझायेंगी