गांव के स्कूलों की क्या दुर्दशा होती है और कोई मिशनरी भाव का अध्यापक आ जाए तो क्या काया कल्प हो जाता है यह इस भावपूर्ण कहानी का संदेश है।
अगस्त, 2023
स्वाधीनता विशेषांक
कहानी पूनम पांडे
बड़ी लगन, समर्पण और कड़ी मेहनत के बल पर मनु ने शिक्षक का पद पा ही लिया था। सूरत से मासूम और सीरत से संकल्पवान मनु ने अपने मन में शुरू से ही, एक शिक्षक की नौकरी की तमन्ना पाल रखी थी। बचपन से किशोर वय तक वह जब किसी भी बड़ी शख्सियत का साक्षात्कार पढ़ता या सुनता तो उनके संपूर्ण निर्माण में उनके गुरु के योगदान को अहम और महत्वपूर्ण देखकर, जानकर अचंभे में पड़ जाता। ‘शिक्षक तो काया कल्प कर सकता है,’ वह यही चिंतन करता और इस तरह मनु के जेहन में उतरी शिक्षक की छवि अब तो उसकी सोच समझ में भी कमाल करने लगी थी और यह छवि उसको अपनी सी लगने लगी थी। शनैः-शनैः इसी लक्ष्य के प्रति स्वतः मोह ने उसकी यह इच्छा मजबूत की। बचपन से किशोर वय तक रात उसे नींद में ऐसे ऐसे हैरतअंगेज सपने दिखाई देते। कभी उसने कालोनी की सड़क पर भीख मांगने वाले बच्चों को चार पांच दिन में ही अक्षर ज्ञान करा दिया फिर उनको भीख तथा चोरी चकारी की संकरी गली को पार कराके सरकारी पढ़ाई की तरफ लगाया और उन फुटपाथी बच्चों ने बडे़ लक्ष्य का पीछा किया। अब वह बच्चे औरों की मदद करने लगे। तो कभी यह सपना आता कि उसने दूर से ही भांपकर किसी रूढ़िवादी बाप को अपने बच्चे के साथ, चना, मूंगफली बेचते देखा और तुरंत उसको ठेले पर से हटाकर, पिता को डपटकर, उस बच्चे के बचपन को खिलना और फलना-फूलना सिखाया और बाल श्रम से उस नादान को बहुत दूर ले आया।
खैर! मनु और उसके भीतर समाज बनाने वाले टीचर के हैरतअंगेज कारनामे का यह काल्पनिक सिलसिला, यह सब पांचवी सातवीं कक्षा तक चलता रहा, क्योंकि होश संभालने वाकई समझदार होने के बाद से उसमें टीचर बनने की साध तो वैसी ही रही लेकिन अब उसने फिल्मी नहीं बल्कि गंभीरता से एकदम असली वाला गुणी ज्ञानवान अध्यापक बनने का ख्वाब संजो लिया था।
यों सपने अब भी आते थे पर उनमें व्यवहारिकता का पुट रहता था। मसलन ऐसा सपना कि कोई पिता अगर अपने बच्चे से बाल मजदूरी कराकर उसकी पढ़ाई रोक रहा है तो तैश में आकर सरेआम उसको कुछ नहीं कहना है बल्कि उसके घर पर जाकर असलियत का पता लगाना है और कोशिश करनी है कि उस घर पर किसी सरकारी योजना के तहत दो समय भोजन पहुंच जाये और बच्चे का बचपन बिगड़ने से बच जाये।
अब मनु संसार को महान शिक्षाविदों के जीवन चरित पढ़ता और संस्कृत सहित अन्य भाषाओं में भी ध्यान लगाता। कबीर, सूर, रहीम, नानक से लेकर मैथिलीशरण गुप्त उसको जागरूक करते साथ ही आनंद और जोश से भर देते। गणित उसका प्रिय विषय रामानुजम से पाइथागोरस तक सबको गहराई से समझता। सप्ताह में एक दिवस चीट डे मनाना और कुछ कॉमिक आदि पढ़ लेना, दोस्तों के संग पिकनिक मनाना और बाकी दिन ताजा पकी हुई पौष्टिक दाल-रोटी, दूध, दही, मक्खन, दलिया खाना और पढ़ाई में मन लगाना। इस तरह चौबीस साल उम्र का बांका जवान मनु अपनी पहली पोस्टिंग के रूप में, टीचर टेªनिंग के बाद राज्य के सीमावर्ती गांव चैनपुर में जोईनिंग दे चुका था। दूरदराज का यह चैनपुर गांव कैसा होगा। इसका पूरा अनुमान उसने खूब लगा लिया था। गांव में बहुत समय बाद गणित का टीचर ज्वाइन करने वाला है, यह खबर कौन से तेज चैनल से वहां गई होगी? कौन जाने? लेकिन गांव से हटकर रहने वाले और अपने बच्चों को दस किलोमीटर दूर किसी अंग्रेजी स्कूल में भेजने वाले कुछ रसूखदार उसको मुफ्रत का गणित ट्यूटर बनाने के लिए देसी घी के व्यंजनों से जीमाने और गुलाब गेंदे की माला पहुंचाने के इच्छुक बार-बार फोन करने लगे थे। और संदेश आने लगे थे। पर मनु तो किसी और ही माटी का बना था। ‘जी, मेरा आजकल उपवास है, बाहर खाने की सौंगध है, इन दिनों घी मक्खन आदि का परहेज है।’ कहकर उसने एक-एक कर सबको टाल दिया था।
अब गांव पहुंचा, वहां विद्यालय में प्रवेश किया तो स्कूल का भूगोलऔर प्राकृतिक दृश्य सिरे से ही अटपटे से दिखाई दिये। पचास की उम्र के और एक क्विंटल से ज्यादा वजनी हेडमास्टर साबूजी, वह अपनी शारीरिक हलचल और बोलचाल दोनों में ही महासुस्त थे। पांच अध्यापक और दो चपरासी तीस पैंतीस आयु वर्ग के चपल कर्मी थे।
मगर वह चपलता अपने मतलब के लिए थी। शिक्षा का दान करवाना या निरक्षरता रोकना यह सब राम भरोसे है, इस विचार की उन सबको कुछ आदत हो गई थी या जान बूझकर हो रहा था मगर स्कूल मतलब उन सबके लिए बस समय गुजारना ही थी। ऐसा मनु ने महसूस किया और यह दूसरे ही दिन प्रमाणित भी हो गया। हुआ यह कि दोपहर में एक आदमी दौड़ कर आया, हांफता-हांफता बोला, ‘गुरुजी मेरी बात सुनो, मेरे बेटे को दसवीं में अच्छे अंक मिले थे। अब दो साल बाद बारहवीं में है। पर स्कूल नहीं आना चाहता। आप आगे कोई अच्छा गणित का शिक्षक बता दो तो वह परीक्षा पास करके कोई रोजगार पा लेगा नहीं तो दो तीन लोग उसे जुआ खेलना और कच्ची शराब बनाना सिखा रहे हैं। आप जरा मेरे बेटे को स्कूल आने को कहो और मेरी सहायता करो।’
यह सुनकर मनु कुछ कहता या करता, इसके पहले ही हेडमास्टर और बाकी अध्यापक शुरू हो गये, ‘अच्छा, बेटा चल इधर खड़ा हो जा। हां, अब जरा ये तो बता कमुवा, इस समय दोपहर के बारह बजे तू अपनी मजदूरी खोटी करके नरेगा की दिहाड़ी बिना कुछ काम किये खाते में डालेगा, हैं? बोल, जवाब दे, अरे हमको गधा समझा है क्या, और तेरा बेटा वह रमुवा, वह हट्टा-कट्टा सोलह साल का अक्ल वाला क्या दूध पीता बच्चा है, जो उसकी पहाड़े की तरह रटाना पड़ेगा कि सुन ओ, भोले बालक, ये काम कर और ये मत कर——, हैं।’ पागल आदमी।’ यहां स्कूल में हजार काम हैं मगर हमको तू वहां ले जायेगा और फिर हम तेरी गुलामी करेंगे, चल यहां से, और कान खोलकर सुन, यह स्कूल है, कोई आलू-टमाटर का ठेला नहीं समझ गया। कभी पोलियों की खुराक पिलाओ, कभी जनगणना करो, कभी गांव वालों का पूरा परिचय भेजो, और उसके बाद एक-एक को स्कूल लाओ यहां पर सबको पढ़ाओ, दोपहर को रोज ताजा खाना पकाकर खिलाओ, ऐसा कहकर वह अंगुली से संकेत करने लगे, मैदान में दूसरी तरफ बच्चे दोपहर का सरकारी खाना यानि पोषाहार खा रहे थे। अब भाग वैसे ही बहुतेरे काम पड़े हैं।’ कमुवा इतनी डांट-फटकार सुनकर वहां भला कैसे ठहर पाता, वह उल्टे पैरो निराश लौट गया। हां, मनु यह सब सुनकर उस समय तो खामोश रहा। पर वह जानता था कि उसे अब यहां हर पल क्या-क्या करना है। गप्प लगाने, मुफ्रत की ताजा लस्सी छाछ गटकने और धूप छांव में कुर्सी सरकाने वाला टीचर वह कतई नहीं बनना चाहता था। यहां व्यवस्था किसी ढर्रे पर चल रही थी और हौले-हौले मृतप्राय हो रही थी मगर वह भी तो मनु ही था। एक विद्यालय का मान सम्मान उसे ही वापस लाना था। कुछ ही दिनों में उसने स्कूल के सभी पेंडिंग कामों की फाईलों का अध्ययन कर लिया और उन पर काम शुरू कर दिया। स्कूल के आिफस में कम्प्यूटर दो थे, पर उपयोग ना के बराबर। वह एमएस आफिस से भली प्रकार परिचित था। कम्प्यूटर अपनी टेबल पर रखवा कर उसने सभी बच्चों की डिजीटल फाइल तैयार कर ली। मानसिक क्षमता वाले अलग, शारीरिक क्षमता वाले बच्चे अलग करके दो भागों में बांट दिये। अब उनमें से बेहतर बच्चे चुन लिये। उनको बुलाया उनसे बात कर ली और अब उन प्रतिभावान बच्चों पर चुस्त-दुरूस्त काम जमीन पर होने लगा। उस प्रगति को दिन प्रतिदिन वह मॉनिटर करने लगा। छह महीने में ही डेढ़ सौ से अधिक बच्चे गणित और विज्ञान में जिला स्तर पर प्रतियोगिता में शामिल होकर चैनपुर का नाम रोशन कर चुके थे। पुरस्कार एक बहुत ही बड़ी प्रेरणा बन गया। अब स्कूल में सारे बच्चे खुद ही अनुशासन में थे। इस तरह मनु अपने स्तर पर गांव की निरक्षरता को बिल्कुल जड़ से सुलझा रहा था। उसके अच्छे काम की खबर हर जगह पहुंच रही थी और अब तो हेड मास्टर साहब उसकी एक-एक राय उसी समय मान लेते थे। वह गद्गद् थे कि युवक है मनु और ट्यूशन करके दोगुना रुपया कमा सकता है लेकिन यह तो सच्चा शिक्षक है यह प्रमाणित हो गया था। वह मन ही मन उसको खूब आशीष देते। साथ ही उसको जब जरूरत होती नई तकनीक या शिक्षण सामग्री जल्द से जल्द मुहैया करा देते। हेड मास्टर के जिक्र पर वह जिला शिक्षा अधिकारी की भी शाबाशी पा चुका था। मिलनसार और दबंग व्यवहार के समुचित मिश्रण ने उसे साथी अध्यापकों और चैनपुर के लोगों को अपना चहेता बना दिया था।
अब उसने रमुवा और कमुवा को बुलाकर उनसे मुलाकात की और उनके मामले की भी पड़ताल कर डाली। कहानी यों थी कि कमुवा की पत्नी भाग गई और फिर लौटी नहीं, इसलिए रमुवा बिना मां का बेटा था, और उसका पिता कमुवा खुद शाम पांच बजे से रात तक नशा करता था, मां तो मिली नहीं और वह कमुवा पिता ठीक-ठाक सा भी नहीं बन सका। एक दिन मजदूरी करता और नशे में दो दिन खाट पर पड़ा रहता। बस यही सब कर्म कांड देखकर वह रमुवा जो दिमाग से तो बहुत तेज था कि जो पढ़ता उसे याद हो जाता पर पिता की आदत से पीड़ित रमुवा बहुत ही लापरवाह और धूर्त हो गया था। मनु ने रमुवा को रोज दो घंटे की आसान मेहनत का एक काम दिया और पहले सप्ताह रमुवा की पूरी जासूसी भी करवा डाली। पता लगा कि उसने अपना पूरा फर्ज निभाया। मनु ने जिस काम के लिए उसको रोजाना सौ रुपये दिये थे, उससे ज्यादा मेहनत कर डाली कमुवा ने। उसने पहाड़ी पर रहने वाले बच्चों को इतनी बरसात में भी सारे विषय पढ़ा दिये, बेचारे रास्ता बंद होने की वजह से स्कूल नहीं आ पा रहे थे। पर यह बरसाती मौसम रमुवा को न रोक सका। वह इतने प्यार से पढ़ाता कि उन गरीब और पहाड़ी पर रहने वाले बच्चों को पढ़ाई से लगाव होने लगा। दरअसल एक अनोखा सा मनोवैज्ञानिक सहारा काम करने लगा था, जिसके बारे में मनु ने सोचा तक न था। इन दिनों दोनों बाप बेटों को मनु में अपना माई बाप नजर आने लगा था। जिस गांव में कोई पूछता तक न था। और जिस स्कूल से दुत्कार कर भगा दिया जाता था। रमुवा को बचपन से ही वहां पोषाहार ऐसे मिलता जैसे भीख। और आज वहां पर मजदूरी देकर पूरे मान सम्मान से काम के लिए कहा जा रहा था। दोनों जानते थे कि जो काम मनु ने रमुवा को सौंपा शिक्षा विभाग से कोई भी यह काम कर सकता था।
अध्यापक मनु जी ने अपनापन बनाये रखने के लिए ही उनको यह अहम जिम्मेदारी नहीं सौंपी। जरूर उनके मुक्कदर को बदलने एक फरिश्ता आ गया था और कोई अनोखी बात हो रही थी। कमुवा ने तो खुद ही नशा पत्ता काफी कम कर दिया था।
रमुवा के काम की तारीफ करके उनका पूरा भुगतान करके मनु ने उसकी पीठ भी थपथपाई और अगले सप्ताह के लिए एक दूसरा काम और दे दिया। काम था गांव के दस बच्चों को रोज एक घंटा एक महीने तक गणित और अंग्रेजी पढ़ाना। यह तो बहुत आसान था। मनु ने जो दस बच्चे बताये वह उसके यानि बारहवीं कक्षा के थे। रमुवा की अपनी पढ़ाई भी हो रही थी। उसको तो डबल फायदा हो रहा था। उसने सहर्ष यह विषय पढ़ाने का काम शुरू कर दिया। मनु ने एक महीने बाद उसको नगद दो हजार रुपये दिये। और रमुवा ने उन रुपयों से कुर्सी मेज खरीदी। आगे जैसा कि होना ही था अब काम के सुखद परिणाम भी दिखने लगे। सब बच्चे अपने मुंह से खुलासेे कर रहे थे। सबके मुंह में रमुवा का नाम था। मनु ने कभी आगे बढ़कर इसका श्रेय नहीं लिया यह बात पूरा स्कूल नहीं पूरा गांव नहीं जिला जानता था और मनु को मानता था। मेहंदी का रंग लाना ही था और हुआ यों कि अब तो हवा ही बदलने लगी। हेड मास्टर साहब ने पत्र लिखा तो रमुवा को छात्रवृत्ति मिलने लगी। साल भर के भीतर ही पचास प्रतिशत से ज्यादा बच्चे गणित में अपना नाम पूरे जिले में रोशन कर चुके थे। दो साल बाद तो यह हाल था कि रमुवा पढ़ने में मदद करता और उसके पढ़ाने के ढंग को सीखने उसका अनुसरण करने बाहर गांव, कस्बे शहर आदि से बड़े स्कूल के बच्चे उससे प्रेरणा लेने लगे। कमुवा तो हैरान था उसका बेटा न्यूज चैनल में गणित और विज्ञान समझने के तरीके बता रहा था। कमुवा ने उसी दिन बाकी बची लत और सब अल्लम गल्लम आदत छोड़ दी बस सही मार्ग पर चलने लगा।
पांच वर्ष में ही मनु ने मेहनत और लगन के बल पर चैनपुर गांव को साक्षर और समझदार गांव में बदल दिया। साथ ही राज्य स्तरीय पुरस्कार के संग पदोन्नत भी प्राप्त कर ली। और आज भी मनु वगैर किसी भेदभाव के हर गांव ढाणी के बच्चे की प्रतिमा निखारता है।
हां रमुवा और कमुवा अब भी मनु के साथ रहते हैं। रमुवा ने एक संस्थान खोल रखा है जहां दुनिया के किसी भी कोने से कोई भी बच्चा आकर रह सकता है पढ़ सकता है। मनु की ज्ञान दान टीम में रमुवा पूरे जोश और जज्बे के साथ है।